Saturday 15 February 2020

डेली_अपडेट ░ Date 15 फरवरी, 2020

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मृत्युदंड की प्रासंगिकता (सामाजिक न्याय)

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समाज की संरचना और तंत्र को सुचारु रूप से क्रियान्वित करने हेतु संस्थागत विधानों का सृजन किया गया जिसमें समाज के सभी वर्गों के हितों के संरक्षण, समाज की अनवरत प्रगति और संस्थाओं के बेहतर निष्पादन जैसे आयामों को एकीकृत किया गया है। संस्थागत विधानों के पारंपरिक स्वरूप में कालक्रम के साथ ही आधुनिक रूप से विकसित और व्यवस्थित संविधान का निर्माण हुआ जिसमे मानव समाज के हितों और अधिकारों को मूल अधिकारों के नाम से संकलित किया गया। समाज की प्रगति जारी रखने हेतु कई प्रकार के संस्थागत और व्यक्तिगत प्रावधान किये गए हैं जिसके परिणामस्वरूप दोनों के मध्य बेहतर तारतम्यता स्थापित की जा सके। समाज की प्रगति और मूल अधिकारों की तारतम्यता के नवीन परिदृश्य के आलोक में मृत्युदंड का विषय वैधानिक पटल पर उभर कर आया है जिसमें सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाए रखने और किसी भी मानव के जीवन के अधिकार के मध्य द्वंद की स्थिति बनी हुई है।


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