इटली के पीसा नामक शहर (पीसा की टेढ़ी मीनार के लिए प्रसिद्ध) में 15 फरवरी 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। अधिकांश लोग गैलीलियो को एक खगोलविज्ञानी के रूप में याद करते हैं जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ ही अपने प्रेक्षणों से ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए जिसने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव रखी। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोलविज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए गैलीलियो को ”आधुनिक खगोल विज्ञान के जनक”, ”आधुनिक भौतिकी का पिता” या ”विज्ञान का पिता” के रूप में संबोधित किया जाता है।
गैलीलियो ने ही जड़त्व का सिद्धांत हमें दिया जिसके अनुसार ”किसी समतल पर चलायमान पिंड तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए”। बाद में यह जाकर न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेड्रल (चर्च) में झूलते झूमर को देख कर उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए – उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया – और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया – कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके आयाम (amplitude) पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है – पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए इतनी परिशुद्धता काफी है)। सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की। इसमें उन्होंने समुद्र की तलहटी की बनावट, इसके ज्वार की तरंगों की ऊंचाई तथा आने के समय में संबंध की चर्चा की – हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।
जिसे आज हम सापेक्षतावाद (Relativity) का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है ”भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है”। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमों का आधारगत ढांचा दिया। सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजों का एक अद्भुत अध्याय। गैलीलियो ने चांद को देखा उसके ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। फिर उन्होंने दूरबीन चमकीले शुक्र ग्रह पर साधी – एक और नई खोज – शुक्र ग्रह भी (चंद्रमा की तरह) कला (phases) का प्रदर्शन करता है। जब उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो देखा और उससे उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला उसने सौरमंडल को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की। गैलीलियो ने देखा की बृहस्पति ग्रह के पास तीन छोटे-छोटे ”तारे” जैसे दिखाई दे रहे हैं। कुछ घंटे बाद जब दुबारा उसे देखा तो वहां तीन नहीं बल्कि चार ”तारे” दिखाई दिए। गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। (तब तक यह माना जाता था कि ग्रह और सूर्य सभी पिंड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। हालांकि निकोलस कॉपरनिकस गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की – पर इसे मानने वाले बहुत कम थे। गैलीलियो की इस खोज से सौरमडंल के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला।)
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