Tuesday, 18 February 2020

चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु
* नाचते गाते झांझ मजीरा बजाते हुए भी प्रभु की भक्ति की जा सकती है प्रभु भक्ति के इस स्वरूप को चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं अपनाया और सामान्य जनों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया
* चैतन्य महाप्रभु भक्ति काल के प्रमुख संतों में से एक हैं
* वैष्णवों के गोंडीय संप्रदाय की आधारशिला उन्होंने ही रखी थी
* उन्होंने भजन गायकी की एक नई शैली को जन्म दिया था
* राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में उन्होंने भक्तों को जात-पात ऊंच-नीच की भावना से दूर रहने की शिक्षा दी
* उन्होंने विलुप्त हो चुके वृंदावन को फिर से बसाया था
* माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1486 में पश्चिम बंगाल के नवद्वीप गांव में हुआ था जिसे अब मायापुर कहा जाता है
* बचपन में सभी इन्हें निमाई पुकारा करते थे
* गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग गौर हरी गौर सुंदर भी कहा करते थे
* इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था
* निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे
* इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था
* बहुत कम आयु में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे
* इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया
* निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद्चिंतन में लीन रहकर राम व कृष्ण का स्तुति गान करने लगे थे
* 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ 1505 में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई
* वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ
* जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया
* 1509 में जब यह अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया गए तब वहां उनकी मुलाकात संत ईश्वरपूरी से हुई
* संत ईश्वरपुरी ने निमाई से कृष्ण कृष्ण रखने को कहा तभी से वे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे
* चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रारंभ किए गए नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज भी देश विदेश में देखा जा सकता है
* चैतन्य को उनके अनुयायी कृष्ण का अवतार भी मानते हैं
* श्री कृष्ण के प्रति अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए
* 45 वर्ष की आयु में 1533 में इनका निधन हुआ
* यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता
* वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं
* गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं
* हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे।
   हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे॥
यह कीर्तन महामंत्र निमाई की ही देन है इसे तारकब्रह्ममहामंत्र कहा गया

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