Thursday 20 February 2020

आदित्य एल 1 मिशन, #पार्कर सोलर प्रोब

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#चर्चा_में_क्यों?
हाल ही में नासा के सूर्य मिशन पार्कर सोलर प्रोब (Parker Solar Probe) से प्राप्त आँकड़ों के आकलन से संबंधित जानकारी को प्रकाशित किया गया। ध्यातव्य है कि भारत भी सूर्य का अध्ययन करने के लिये पहला वैज्ञानिक अभियान भेजने की तैयारी में है।

#महत्त्वपूर्ण_बिंदु:-
इसरो अगले वर्ष चंद्रयान- 3 तथा वर्ष 2022 तक अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की तैयारी के साथ सूर्य से संबंधित परीक्षण के लिये आदित्य एल-1 मिशन को भेजने की तैयारी कर रहा है।

#आदित्य_एल_1_मिशन_के_बारे_में:-
•Aditya L-1 Mission के वर्ष 2020 में शुरू होने की उम्मीद है यह सूर्य का नज़दीक से निरीक्षण करेगा और इसके वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र के बारे में अध्ययन करेगा।
•ISRO ने आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान- XL (PSLV- XL) से लॉन्च किया जाएगा।
•यह मिशन भारतीय खगोल संस्थान (Indian Institute of Astrophysics- IIA), बंगलूरू, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (Inter University Centre for Astronomy and Astrophysics- IUCAA), पुणे और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस , एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science, Education and Research- IISER), कोलकाता के साथ-साथ ISRO की विभिन्न प्रयोगशालाओं के सहयोग से संचालित होगा।
•सितंबर 2015 में एस्ट्रोसैट के बाद आदित्य एल-1 इसरो का दूसरा अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान मिशन होगा।
•इस मिशन के अंतर्गत अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला में सूर्य के कोरोना, सौर उत्सर्जन, सौर हवाओं और फ्लेयर्स तथा कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejections- CME) का अध्ययन करने के लिये बोर्ड पर 7 पेलोड (उपकरण) होंगे।
     ध्यातव्य है कि मिशन के सभी प्रतिभागी संस्थान वर्तमान में अपने संबंधित पेलोड को विकसित करने के अंतिम चरण में हैं। कुछ उपकरणों का निर्माण किया जा चुका है और परीक्षण चरण में प्रत्येक घटक की जाँच की जा रही है तथा कुछ पेलोड के अलग-अलग घटकों को असेम्बल किया जा रहा है।
     ध्यातव्य है कि आदित्य एल- 1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज बिंदु के निकट स्थापित किया जाएगा।

#सूर्य_का_अध्ययन_क्यों_महत्त्वपूर्ण_है?
•पृथ्वी सहित हर ग्रह और सौरमंडल से परे एक्सोप्लैनेट्स विकसित होते हैं और यह विकास अपने मूल तारे द्वारा नियंत्रित होता है। सौर मौसम और वातावरण जो सूरज के अंदर और आसपास होने वाली प्रक्रियाओं से निर्धारित होता है, पूरे सोलर सिस्टम को प्रभावित करता है।
•सोलर सिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव उपग्रह की कक्षाओं को बदल सकते हैं या उनके जीवन को बाधित कर सकते हैं या पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार को बाधित कर सकते हैं या अन्य गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इसलिये अंतरिक्ष के मौसम को समझने के लिये सौर घटनाओं का ज्ञान होना महत्त्वपूर्ण है।
•पृथ्वी पर आने वाले तूफानों के बारे में जानने एवं उन्हें ट्रैक करने तथा उनके प्रभाव की भविष्यवाणी करने के लिये निरंतर सौर अवलोकन की आवश्यकता होती है, इसलिये सूर्य का अध्ययन किया जाना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

#मिशन_से_संबंधित_चुनौतियाँ
•सूर्य से संबंधित मिशनों के लिये सबसे बड़ी चुनौती पृथ्वी से सूर्य की दूरी है, इसके अतिरिक्त सौर वातावरण में अत्यधिक तापमान एवं विकिरण भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। हालाँकि आदित्य एल 1 सूर्य से बहुत दूर स्थित होगा और उपग्रह के पेलोड (Payload) /उपकरणों के लिये अत्यधिक तापमान चिंता का विषय नहीं है। लेकिन इस मिशन से संबंधित अन्य चुनौतियाँ भी हैं।
•इस मिशन के लिये कई उपकरणों और उनके घटकों का निर्माण देश में पहली बार किया जा रहा है जो भारत के वैज्ञानिकों, इंजीनियरिंग और अंतरिक्ष समुदायों के लिये एक अवसर के रूप में चुनौती पेश कर रहा है। ऐसा ही एक घटक उच्च पॉलिश दर्पण (Highly Polished Mirrors) है जो अंतरिक्ष-आधारित दूरबीन पर लगाया जाएगा।
•इसके अतिरिक्त इसरो के पहले के मिशनों में पेलोड अंतरिक्ष में स्थिर रहते थे किंतु इस मिशन में कुछ उपकरण अंतरिक्ष में गतिशील अवस्था में होंगे जो कि सबसे बड़ी चुनौती है।

#स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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