🌺 जनसंख्या में कमी (1970-2014)
जैव विविधता में गिरावट का मुख्य कारण कृषि योग्य भूमि रूपांतरण की अतिवृद्धि है।
कशेरुकी (vertebrate) जानवरों की संख्या में 60 प्रतिशत की गिरावट।
ताज़े पानी के जीवों की आबादी में 80% गिरावट।
लैटिन अमेरिका में 90% वन्यजीवन की क्षति।
विलुप्त होती प्रजातियाँ
1970 से 2014 तक मछली, पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचर और सरीसृपों की आबादी में औसतन 60% की कमी हुई है और इसी अवधि में ताज़े पानी में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 83% की कमी आई है।
1960 से अब तक वैश्विक पारिस्थितिकीय पदचिह्न (footprint) में 190% से अधिक की वृद्धि हुई है।
वैश्विक स्तर पर 1970 से अब तक आर्द्रभूमि की सीमा में 87% की कमी हुई है।
सिकुड़ते वन क्षेत्र
वन क्षेत्र में ह्रास का मुख्य कारण मानव द्वारा दिनों-दिन बढ़ता वन संसाधनों का उपभोग है। ऊर्जा, भूमि और पानी की बढ़ती मांग के चलते प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन जारी है। उपभोग संकेतक जैसे - पारिस्थितिक पदचिह्न (Ecological Footprint), इस समग्र संसाधन उपभोग की एक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि किस सीमा तक पर्यावरण क्षतिग्रस्त हो चुका है।
पिछले पाँच दशकों में अमेज़न वर्षावन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा (दुनिया का सबसे बड़ा वर्षावन) विलुप्त हो गया है। उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई भी लगातार जारी है, मुख्य रूप से सोयाबीन, ताड़ के वृक्ष और मवेशियों के चरागाह के रूप में इनका इस्तेमाल दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2000 से 2014 के बीच दुनियाभर में 920,000 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र नष्ट हो गया, जो लगभग पाकिस्तान या फ्राँस और जर्मनी के आकार के बराबर क्षेत्र था।
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