Saturday, 27 October 2018

चाबहार बंदरगाह

-✍️चाबहार बंदरगाह

हाल ही में भारत, अफगानिस्तान और ईरान ने चाबहार बंदरगाह परियोजना के विषय में अपनी पहली तीन पक्षीय बैठक की। इस बैठक में परियोजना के कार्यान्वयन के बारे में समीक्षा की गई। इस बैठक का एक विशेष महत्त्व है क्योंकि ऊर्जा-सम्पन्न ईरान का यह बंदरगाह सामरिक रूप से एक महत्त्वपूर्ण स्थान पर अवस्थित है और यह अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के दायरे में आता है।

👉बैठक के परिणाम

बैठक में एक ऐसी अनुपालना समिति को गठित करने का निर्णय लिया गया जो आने वाले दो महीनों के भीतर चाबहार बन्दरगाह में अपनी पहली बैठक करेगी! उस बैठक में समिति आवागमन, मार्ग, चुंगी तथा कौंसुल विषयक मामलों पर चर्चा करेगी और नियमों को अंतिम रूप देगी जिससे यह मार्ग आकर्षक हो जाए और साथ ही ढुलाई का खर्च घट जाए।

👉चाबहार बंदरगाह

👉भारत ने ही चाबहार बंदरगाह बनाया है।
👉इसका उद्देश्य है कि चारों तरफ जमीन से घिरे अफगानिस्तान को फारस की खाड़ी (Persian Gulf) तक पहुँचने के लिए एक ऐसा यातायात गलियारा मिले जो पाकिस्तान होकर नहीं गुजरे क्योंकि पाकिस्तान से इसकी अक्सर ठनी रहती है।
👉आशा है कि इस गलियारे के चालू हो जाने से अरबों रुपयों का व्यापार हो सकता है।
👉ईरान का चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी पर स्थित उस देश का एकमात्र बन्दरगाह है।
👉चाबहार के बंदरगाह से भारत को मध्य एशिया में व्यापार करने में सुविधा तो होगी ही, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे (International North-South Transport Corridor) तक उसकी पहुँच भी हो जाएगी।
👉चाबहार बंदरगाह चालू होने के बाद भारत में लौह अयस्क, चीनी और चावल के आयात में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
👉इसके अतिरिक्त खनिज तेल के आयात की लागत भी बहुत कुछ घट जायेगी।
ज्ञातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा ईरान से लेकर रूस तक जाता है और इसमें यह एक भूमि मार्ग है जिसमें समुद्र, रेल, सड़क यातायात का सहारा लिया जायेगा।
विदित हो कि चीन ने खाड़ी तक अपनी पहुँच बनाने के लिए पाकिस्तान को ग्वादर नामक बंदरगाह बनाने में मदद की है जिससे उसका क्षेत्र में दबदबा हो जाए।
चाबहार बंदरगाह भारत को चीन के इस दबदबे का प्रतिकार करने में सक्षम बनाएगा।

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