Daily Editorial
17 August 2018
अब ड्रोन से आतंकी चुनौती
स्रोत: द्वारा ब्रह्मदीप अलूने: जनसत्ता
तकनीकी प्रगति के साथ नए-नए हथियारों का भी जन्म होता है और युद्ध के सिद्धांतों पर आधारित रण कौशल के इतिहास में एक नया दौर शुरू हो जाता है। पिछले दिनों लातिन अमेरिकी देश वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो राजधानी कराकास में जब एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, उसी समय विस्फोटकों से लदा एक ड्रोन सभास्थल गिरा और फट गया। यह ड्रोन सेना या पुलिस का नहीं, बल्कि आतंकियों द्वारा संचालित था। इस घटना में वेनेजुएला के राष्ट्रपति तो बच गए, लेकिन दुनियाभर की सुरक्षा एजंसियों के सामने एक नई चुनौती जरूर खड़ी हो गई। यह ऐसी चुनौती है जिससे निपटना आसान नहीं होगा।
इस घटना से यह तो स्पष्ट हो गया है कि नाभिकीय, जैविक, रासायनिक और आत्मघाती आतंकवाद से निपटने की जद्दोजहद के बीच अब ड्रोन आतंकवाद ने दस्तक दे दी है। आधुनिक युग में प्रौद्योगिकी ने आतंकवाद को भी एक विज्ञान की शक्ल दे डाली है। अब आतंकवाद में जातीय, धर्मांध, अशिक्षित, कट्टरपंथी ताकतों के साथ वैज्ञानिक मस्तिष्क भी शामिल हो चुके हैं। पारंपरिक तौर-तरीकों से अलग हट कर ज्यादा नुकसान करने के लिए वैमानिकी आतंक या लोन वुल्फ की भयावहता सबके सामने है। पिछले कई सालों से सामूहिक विनाश की संभावनाओं का पता लगाने के लिए आतंकी गोपनीय ठिकानों पर शोध, उत्पादन और युद्ध की रणनीति बना रहे हैं। यह काम बदस्तूर जारी है। इसका पहला मामला वर्ष 1978 में तब सामने आया था जब न्यूयार्क के एक छात्र ने स्वयं नाभिकीय संयंत्र बना कर सबको हैरान कर दिया था। बाद में लीबिया के एक आतंकी संगठन ने उस छात्र पर फार्मूला हासिल करने के लिए दबाव डाला था।
इसके बाद तो आतंकी हमलों के ऐसे नए-नए तरीके सामने आते गए जिन्होंने दुनिया के तमाम सुरक्षा विशेषज्ञों को चौंका दिया। वर्ष 1979 में पूर्व सोवियत संघ के शहर- सर्वदलोस्क में आतंकियों ने चार से पांच ग्राम एंथ्रेक्स के जीवाणु छोड़ दिए थे, और इस जैविक हमले में करीब एक हजार व्यक्ति मारे गए थे। जर्मनी में 1991 में नियो नाजी आतंकी को उस समय हिरासत में लिया गया था, जब वह एक सभागार में हाइड्रोजन सायनाइड गैस को पंप के द्वारा प्रवाहित करने ही वाला था। इसके बाद आतंकवाद का स्वरूप और हमले के तरीके और बदलते गए। सन 1995 में टोक्यो रेलवे स्टेशन पर अम-शिन-रिकयो और सोको आशारा नामक आतंकी संगठन के तीन आतंकियों ने एक प्लास्टिक थैले को पंचर कर सरीन नामक स्नायु गैस का फैला कर वातावरण को जहरीला बना दिया था। इसी प्रकार 1996 में एक प्रयोगशाला से आतंकियों ने तीन गैलन ब्यू बोनिक प्लेग जीवाणु हासिल करने की कोशिश की थी।
लेकिन सितंबर 2001 में अमेरिका पर जो आतंकी हमला हुआ, उसे दुनिया शायद ही कभी भूल पाएगी। यह न सिर्फ अमेरिका के इतिहास का, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा और भयानक आतंकी हमला था। इसे अंजाम देने के लिए अलकायदा ने दो यात्री विमानों का अपहरण कर उन्हें न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की दो गगनचुंबी इमारतों में घुसा दिया था। विमानों के टकराने से जो भयानक आग लगी, उससे ये भारी भूकम्प झेल सकने की क्षमता वाले अति सुरक्षित टॉवर पिघल कर ढह गए थे। आतंकियों ने तीसरा विमान अमेरिकी रक्षा मंत्रालय- पेंटागन और चौथे विमान को पेनसिल्वेनिया में गिराया था। इस हमले में तीन हजार लोग मारे गए थे। विमान को आत्मघाती बम के रूप में इस्तेमाल करने की यह पहली और बेहद दुस्साहसिक घटना मानी जाती है। हाल के वर्षों में इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आइईडी) और इंप्रोवाइज्ड न्यूक्लियर डिवाइस (आइएनडी) जैसे आतंकी हमलों की आशंका ज्यादा बढ़ गई है।
लेकिन अब दुनिया को ड्रोन हमले की नई चुनौती का सामना करना होगा। आने वाले समय में आतंकियों के लिए ड्रोन सामूहिक विनाश का एक बड़ा हथियार बन सकता है। अभी तक अनेक देश ड्रोन का इस्तेमाल खुफिया तंत्र और सुरक्षा के लिए करते रहे हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सोमालिया और यमन जैसे आतंकवाद ग्रस्त देशों में ड्रोन हमलों से ही आतंकियों की कमर तोड़ी है और कई बड़े आतंकियों का सफाया किया है। ड्रोन मानवरहित बहुत ही छोटे और टोही विमान होते हैं जिन्हें रोबोट की तर्ज पर सुदूर स्थान से नियंत्रित और संचालित किया जाता है और इनसे लक्ष्य को आसानी भेदा जा सकता है। वर्तमान में ड्रोन का प्रयोग जासूसी करने और बिना आवाज किए मिसाइल या घातक हथियारों से हमला करने में भी किया जा रहा है।
हार्न ऑफ अफ्रीका कहलाने वाले सोमालिया में वर्ष 2016 में अमेरिका ने अल-शबाब के आतंकियों को निशाना बनाया था। सोमालिया की राजधानी मोगादिशू से करीब सवा सौ मील उत्तर में अमेरिकी ड्रोन हमले में आतंकवादी गुट अल-शबाब के डेढ़ सौ से ज्यादा आतंकी मारे गए थे। इस हमले में आतंकियों के एक प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाया गया था, जहां बड़े पैमाने पर हमले की योजना बनाई जा रही थी और सोमालिया में अमेरिका और अफ्रीका की संयुक्त सेनाओं के लिए खतरा बनने वाले थे। ड्रोन से इस इलाके पर बहुत दिनों से नजर रखी जा रही थी। साल 2016 में अमेरिका ने ड्रोन हमले में ही उमर मंसूर नाम के खतरनाक आतंकी को मार गिराया था। यह आतंकी दिसंबर, 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में हुए कत्लेआम का मास्टरमाइंड था। इस हमले में एक सौ चवालीस छात्र और शिक्षक मारे गए थे। यह हमला पाकिस्तान में हुए सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था। इसके बाद ही पाकिस्तान की सरकार आतंकवादियों के खिलाफ देश में अभियान छेड़ने को मजबूर हुई थी। ड्रोन हमलों से अमेरिका ने तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को खासा नुकसान पहुंचाया है।
चीन के अशांत जिनजियांग प्रांत की निगरानी ड्रोन के जरिए की जाती है। कबूतर और परिंदों की तरह दिखने वाले इन हाईटेक ड्रोन को पहचान पाना बहुत मुश्किल होता है। आकार में ये इतने छोटे होते हैं कि आसमान में इन्हें परिंदों से अलग कर पहचानना नामुमकिन होता है। ड्रोन की खूबी यह होती है कि आसमान में उड़ते हुए भी ये राडार की पकड़ से बाहर होते हैं। इनका वजन दो सौ ग्राम के आसपास होता है। रूसी सामरिक विशेषज्ञ पाकरोवस्की का कहना है कि संसार के इतिहास में ऐसे अनेक मौके आए हैं जिनमें नए हथियारों के आविष्कार से युद्ध करने के तरीकों में, सेनाओं के स्वरूप में और युद्ध नीति में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इसका प्रभाव इतना विस्तृत और गंभीर हुआ है कि इससे न केवल पूरे समाज का ढांचा बदल गया, बल्कि सैन्य शक्ति को भी नई परिभाषा मिली। दुनिया में ताकत के मायने बदल गए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बारूद की खोज और उसका युद्ध में इस्तेमाल है।
अमेरिका के रक्षा विभाग की रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजंसी ने एक ऐसा ड्रोन बनाया है जो किसी मक्खी या हमिंग बर्ड जैसा है। हमिंग बर्ड दुनिया का सबसे छोटा और इकलौता पक्षी है जो विपरीत यानी पीछे की दिशा में उड़ सकता है। यह ड्रोन इसी तर्ज पर काम कर सकता है। दुनिया भर के बाजारों में आसानी से उपलब्ध ड्रोन में बारूद की जगह एटमी डिवाइसें लगा दी जाएं और पक्षी की तरह उड़ते हुए यदि वे किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के सभास्थल पर फट जाएं तो इससे होने वाले सामूहिक विनाश का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसे ड्रोन यदि सुरक्षा एजंसियों की नजर में आ भी जाएं, तो उन्हें आसमान में नष्ट करना आत्मघाती और खतरनाक हो सकता है। बहरहाल, अब दुनिया भर में ड्रोन से आतंकी हमले होने का खतरा बढ़ गया है।
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