Thursday 23 August 2018

सिद्ध_साहित्य

#सिद्ध_साहित्य :-
#सिद्धों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म की ब्रजयानी शाखा से है।
ये भारत के पूर्वी भाग में सक्रिय थे।
इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें सरहप्पा, शवरप्पा, लुइप्पा, डोम्भिप्पा, कुक्कुरिप्पा आदि मुख्य हैं।
#सरहप्पा प्रथम सिद्ध कवि थे। इन्होंने जातिवाद और वाह्याचारों पर प्रहार किया। देहवाद का महिमा मण्डन किया और सहज साधना पर बल दिया। ये महासुखवाद द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल देते हैं।
#बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिए जो साहित्य देश भाषा (जनभाषा) में लिखा गया वही सिद्ध साहित्य कहलाता है।
यह साहित्य बिहार से लेकर असम तक फैला था।
#राहुल संकृत्यायन ने 84 #सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है l
जिनमें सिद्ध 'सरहपा' से यह साहित्य आरम्भ होता है।
#बिहार के नालन्दा विद्यापीठ इनके मुख्य अड्डे माने जाते हैं बाद में यह 'भोट' देश चले गए।
इनकी रचनाओं का एक संग्रह #महामहोपाध्याय #हरप्रसाद शास्त्री " ने बांग्ला भाषा में 'बौद्धगान-ओ-दोहा' के नाम से निकाला। सिद्धों की भाषा में 'उलटबासी' शैली का पूर्व रुप देखने को मिलता है।
#हजारी प्रसाद द्विवेदी." ने सिद्ध साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "जो जनता तात्कालिक नरेशों की स्वेच्छाचारिता, पराजय त्रस्त होकर निराशा के गर्त में गिरी हुई थी, उनके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी का कार्य किया। साधना अवस्था से निकली सिद्धों की वाणी 'चरिया गीत / चर्यागीत' कहलाती है।
#सिद्ध साहित्य को मुख्यतः निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:-
(१) नीति या आचार संबंधित साहित्य
(२) उपदेश परक साहित्य
(३) साधना सम्बन्धी या रहस्यवादी साहित्य
#सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषता :-
इस साहित्य में तंत्र साधना पर अधिक बल दिया गया।
साधना पद्धति में शिव-शक्ति के युगल रूप की उपासना की जाती है।
इसमें जाति प्रथा एवं वर्णभेद व्यवस्था का विरोध किया गया।
इस साहित्य में ब्राह्मण धर्म एवं वैदिक धर्म का खंडन किया गया है।
सिद्धों में पंच मकार (मांस, मछली, मदिरा, मुद्रा, मैथुन) की दुष्प्रवृति देखने को मिलती है।
#प्रमुख सिद्ध कवि व उनकी रचनाएँ :-
#सरहपा (769 ई.)- दोहाकोष
#लुइपा (773 ई. लगभग) -- लुइपादगीतिका
#शबरपा (780 ई.) -- चर्यापद , महामुद्रावज्रगीति , वज्रयोगिनीसाधना
#कण्हपा (820 ई. लगभग)-- चर्याचर्यविनिश्चय। कण्हपादगीतिका
#डोंभिपा (840 ई. लगभग)-- डोंबिगीतिका, योगचर्या, अक्षरद्विकोपदेश
#भूसुकपा-- बोधिचर्यावतार
#आर्यदेवपा -- कावेरीगीतिका
#कंवणपा -- चर्यागीतिका
#कंबलपा -- असंबंध-सर्ग दृष्टि
#गुंडरीपा -- चर्यागीति
#जयनन्दीपा -- तर्क मुदँगर कारिका
#जालंधरपा -- वियुक्त मंजरी गीति, हुँकार चित्त , भावना क्रम
#दारिकपा -- महागुह्य तत्त्वोपदेश
#धामपा -- सुगत दृष्टिगीतिकाचर्या
#सिद्ध साहित्य के इतिहास में चौरासी सिद्धों का उल्लेख मिलता है। सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिये, जो साहित्य जनभाषा मे लिखा, वह हिन्दी के सिद्ध साहित्य की सीमा मे आता है
#सिद्ध सरहपा (सरहपाद, सरोजवज्र, राहुल भ्रद्र) से सिद्ध सम्प्रदाय की शुरुआत मानी जाती है। यह पहले सिद्ध योगी थे। जाति से यह ब्राह्मण थे। #राहुल सांकृत्यायन ने इनका जन्मकाल 769 ई. का माना, जिससे सभी विद्वान सहमत हैं। इनके द्वारा रचित बत्तीस ग्रंथ बताए जाते हैं जिनमे से ‘दोहाकोश’ हिन्दी की रचनाओं मे प्रसिद्ध है। इन्होने पाखण्ड और आडम्बर का विरोध किया तथा गुरू सेवा को महत्व दिया।
इनके बाद इनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख सिद्ध हुए हैं क्रमश: इस प्रकार हैं :-
#शबरपा : इनका जन्म 780 ई. में हुआ। यह क्षत्रिय थे। सरहपा से इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। ‘चर्यापद’ इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। इनकी कविता का उदाहरण
हेरि ये मेरि तइला बाड़ी खसमे समतुला
षुकड़ये सेरे कपासु फ़ुटिला।
तइला वाड़िर पासेर जोहणा वाड़ि ताएला
फ़िटेली अंधारि रे आकासु फ़ुलिआ॥
#लुइपा : ये राजा धर्मपाल के राज्यकाल में कायस्थ परिवार में जन्मे थे। शबरपा ने इन्हें अपना शिष्य माना था। चौरासी सिद्धों में इनका सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है। उड़ीसा के तत्कालीन राजा और मंत्री इनके शिष्य हो गए थे।
#डोम्भिया : मगध के क्षत्रिय वंश में जन्मे डोम्भिया ने विरूपा से दीक्षा ग्रहण की थी। इनका जन्मकाल 840 ई. रहा। इनके द्वारा इक्कीस ग्रंथों की रचना की गई, जिनमें ‘डोम्बि-गीतिका’, ‘योगाचर्या’ और ‘अक्षरद्विकोपदेश’ प्रमुख हैं।
#कण्हपा : इनका जन्म ब्राह्मण वंश में 820 ई. में हुआ था। यह कर्नाटक के थे, लेकिन बिहार के सोमपुरी स्थान पर रहते थे।

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