Saturday, 28 July 2018

आइंस्टीन की थ्योरी का विरोध करने वाले उस महान गणितज्ञ के शोध-पत्र (research papers) आज ऑक्सफ़ोर्ड

आइंस्टीन की थ्योरी का विरोध करने वाले उस महान गणितज्ञ के शोध-पत्र (research papers) आज ऑक्सफ़ोर्ड, कैंब्रिज, हॉवर्ड, बोस्टन जैसी विश्वविख्यात यूनिवर्सिटी में पढाये जाते हैं।और निःसंदेह उन्हें भारत-रत्न से अलंकृत किया जाता। परंतु दुर्भाग्य है हमारा हमारे बिहार और संपूर्ण विश्व का कि ऐसा महान गणितज्ञ जो शायद आर्यभट का ही दूसरा जन्म है, वह आज पटना के अशोक राजपथ स्थित एक छोटे से फ्लैट में अपनी जिंदगी गुज़ार रहा है, वह भी मानसिक रोगी की अवस्था में।

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह आज 72 वर्ष के हो गये। अपने जीवन का ज़्यादातर हिस्सा एक मानसिक रोगी के रूप में बिता दिया लेकिन किसी भी सरकार ने इन्हें ठीक कराने के लिये कभी प्रयास नहीं किया। परिजन कहते हैं कि अगर सरकार चाहती तो देश-विदेश के नामी डॉक्टरों से इलाज करवा सकती थी लेकि बीते चार सालों से दिल्ली के एक मानसिक अस्पताल के पुर्जे पर ही दवाएं चल रही हैं। 2009 के बाद किसी डॉक्टर से नहीं दिखाया गया।

कोई भी घर आता है तो वशिष्ठ जी उससे पैसे माँगने लगते हैं। नासा में सफलता के चरम-बिंदु पर पहुँचने के बाद भारत आये और कुछ ही साल बाद सिज्नोफ्रेनिया के मरीज़ बन गये। तब से आजतक बीमारी से कभी उबर न सके। गणित के क्षेत्र की विलक्षण प्रतिभा वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन आज भी कौतुहल है। ठीक उसी तरह जब वह सवालों में उलझे कहीं पड़े मिलते थे।

वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार के आरा के अपने पैत्रिक गाँव वसंतपुर से इन दिनों पटना आ गये हैं और फ्लैट में अपनी बूढ़ी माँ, फौज से रिटायर्ड अपने छोटे भाई और उनके परिवार के साथ रहते हैं। छोटे भाई अयोध्या प्रसाद सिंह बीते 40 वर्षों से अपने बड़े भाई कइ सेवा कर रहे हैं। अयोध्या प्रसाद सिंह बताते हैं कि भैया पूरे दिन गणित के सवालों में ही खोये रहते हैं। रोज़ाना उन्हें नोटबुक और पेन चाहिए होता है। दुनिया के नामी राइटर्स की लिखी कठिन से कठिन कैलकुलस की मोटी-मोटी किताबों को भी सिर्फ एक दिन में खत्म कर देते हैं। एक जगह पर ज्यादा देर तक बैठते नहीं। कभी कमरे में बैठते हैं तो कभी हॉल में। गणित के सवाल हल करते करते जब ऊब जाते हैं तो रामायण-महाभारत, गीता और वेदों का अध्ययन करते हैं। फिर तबला, हारमोनियम और बाँसुरी बजाते हैं।
72 वर्षीय महान वशिष्ठ नारायण सिंह अपनी बूढी माँ के लिये आज भी बच्चे ही हैं। माँ आज भी उनका ख्याल रखती हैं। अपनी ममता को वैसे ही लुटाती हैं जैसे उनका बेटा आज भी नन्हा बच्चा ही हो।

अयोध्या प्रसाद सिंह कहते हैं कि पटना में रहने के बावजूद साइंस कॉलेज के इस पूर्ववर्ती छात्र की आजतक कॉलेज ने कोई खबर नहीं ली। यूनिवर्सिटी प्रशासन भी भूल गया। कम से कम एक बार कॉलेज में बुलाया जाता तो एक बात होती।

कोई याद रखे या न रखे। हम आर्यभट्ट के इस अवतार स्वरुप बिहार की शान को नहीं भुला सकते। आइये हम सब मिलकर इन्हें जन्मदिन की शुभकामनायें दें और इनके पुनः स्वस्थ हो जाने की प्रार्थना करें।

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