Monday, 23 July 2018

अर्थव्यवस्था में #मध्य वर्ग की #भूमिका

#अर्थव्यवस्था में #मध्य वर्ग की #भूमिका!!
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विश्व की अनेक अर्थव्यवस्थाओं के उत्थान में मध्यवर्ग की भूमिका पर अक्सर विवाद होते रहे हैं। एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि क्या किसी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के
उत्थान में मध्य वर्ग एक इंजन का काम कर सकता है ?
आर्थिक इतिहासकार डेविड लैंडस लिखते हैं कि इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के बाद जो आर्थिक प्रभुत्व रहा, वह इंग्लैण्ड के मध्य वर्ग का था।
आर्थिक विकासवादी अभीजित बनर्जी और एस्थर उफलो आर्थिक प्रगति में मध्य वर्ग की भूमिका के तीन तर्कों की चर्चा करते हैं।
कामकाजी वर्ग की तुलना में यह वर्ग थोड़ी सी निवेश योग्य पूंजी और आकांक्षाओं के साथ उद्यमिता के लिए पूंजी निकाल लेता है।
उद्यमिता के लिए आवश्यक मानव पूंजी और बचत, दोनों ही इस वर्ग के पास मौजूद रहती है।
एक ऐसे मध्यवर्ग उपभोक्ता का उदय हो गया है, जो उच्च गुणवत्ता के लिए अधिक खर्च करने को तैयार रहता है। बढ़ी हुई मांग से विकसित उत्पाद का बाज़ार बनता है।
भारत के संदर्भ में इस तीसरे बिंदु को सही नहीं ठहराया जा सकता। 2014 के प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट बताती है कि अगर हम वैश्विक रूप से 10-50 डॉलर प्रतिदिन उपभोग करने वाले मध्यवर्ग को आधार बनाकर मूल्यांकन करें, तो 2011 के मूल्यों और क्रय शक्ति समता के हिसाब से भारत में 2001-11 तक यह 1.5% से 4% ही बढ़ा।
इसी अवधि में चीन में यह छः गुणा यानि 3.5% से 22% तक बढ़ गया।
विश्लेषण की इसी कड़ी में संध्या कृष्णन और नीरज हटेकर की निर्धन देशों में मध्य वर्ग के वर्गीकरण की व्याख्या कुछ विचार योग्य जान पड़ती है।
उनके अनुसार एक निर्धन, एक निम्न मध्य वर्ग एवं उच्च मध्यवर्ग के व्यक्ति का प्रतिदिन उपभोग क्रमशः 2; 2-4 और 6-10 डॉलर तक रहता है।
इस वर्गीकरण के आधार पर मिले डाटा से यह सिद्ध हुआ कि लगभग 28% शहरी और 10% ग्रामीण 2-4 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपभोग करते हैं।
2017 में कृष्णन और हटेकर ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय से 2000-01, 2004-05, और 2011-12 का उपभोक्ता डाटा प्राप्त किया और पाया कि मध्य वर्ग (2-10 डॉलर तक उपभोग करने वाला समूह) 2001-11 तक 21% बढ़ा। इसमें भी 2-4 डॉलर वाला वर्ग 81.67% तक 2011-12 में 73.75% बढ़ा है। जबकि उच्च मध्य वर्ग 5% और 2011-12 में 8% बढ़ा है।
इस सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि भारत का आर्थिक भविष्य निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक उपलब्धियों और गतिविधियों पर निर्भर करता है। अगर 2011-12 की जनसंख्या का विश्लेषण करें, तो पूरा मध्य वर्ग लगभग 62 करोड़ ठहरता है। इसमें 46 करोड़ जनसंख्या निम्न मध्य वर्ग में आती है।
बनर्जी और उफलो 13 देशो के डाटा के साथ इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि निर्धन की तुलना में निम्न मध्य वर्ग के पास अपेक्षाकृत स्थायी रोज़गार है। निर्धन की तुलना में निम्न मध्यवर्ग में प्रजनन दर कम है। यह वर्ग शिक्षा व स्वास्थ्य पर अपेक्षाकृत काफी खर्च करता है।
एंजेल के सिद्धाँत के अनुसार – आय बढ़ने के साथ, अगर खाद्य सामग्री पर खर्च बढ़ भी जाए, तब भी मध्य वर्ग का भोजन शेयर खर्च निर्धन वर्ग (2 डॉलर से कम उपभोग करने वाले) की तुलना में कम ही रहता है। इसका कारण यह है कि मध्य वर्ग को सस्ते इलैक्ट्रॉनिक एवं अन्य उपभोक्ता वस्तुओं का भी आकर्षण रहता है। ये सामान उनकी बढ़ी हुई कमाई में से खर्च का कारण बनते हैं।
कुल मिलाकर, हमारे पास ऐसे बहुत से साक्ष्य हैं, जिनसे यह पता चलता है कि मध्य वर्ग में सस्ते उपभोक्ता सामान के साथ-साथ, शिक्षा व स्वास्थ्य में निवेश करने की भी मांग रहती है।
‘#द #इकॉनॉमिक #टाइम्स‘ में प्रकाशित लेख पर आधारित।

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