Sunday 29 July 2018

अंतरराष्ट्रीयबाघदिवस2018

#अंतरराष्ट्रीयबाघदिवस2018

विश्व भर में 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया. यह दिवस जागरूकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. अवैध शिकार और वनों के नष्ट होने के कारण विभिन्न देशों में बाघों की संख्या में काफी कमी आई है.

उत्तराखंड के लिए यह दिन खास है। क्योंकि बाघों के लिए सबसे मुफीद मानी जाने वाली जगह कार्बेट नेशनल पार्क हमारे पास है। यही वजह है कि बाघों की संख्या के मामले में हम देश में दूसरे नंबर पर हैं। लेकिन बाघों की मौत के मामले बढ़ रहे हैं उसे देखकर कहना मुश्किल है कि हम बहुत दिन तक दूसरे नंबर पर बने रहेंगे। पिछले छह महीनों के आंकड़े देखें तो उत्तराखंड में हर महीने औसतन एक बाघ का शिकार हुआ है। इसके अलावा 5 बाघ अन्य कारणों से मारे गए हैं। जनवरी से जून 2016 के बीच बाघों के मरने की सबसे ज्यादा 19 घटनाएं मध्यप्रदेश में हुई। जिसके बाद उत्तराखंड का ही नंबर आता है।

बाघ संरक्षण पर करोड़ों रुपए बहाने के बाद भी शिकारियों को रोक पाना वन विभाग के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी के आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा वर्ष के छह महीने में ही देश में 81 बाघों की मौत हो चुकी है। उत्तराखंड में कार्बेट व तराई के जंगलों में मौजूद बाघ शिकारियों के निशाने पर हैं। शिकार की सभी घटनाएं इन्हीं इलाकों के आसपास हुई। आपसी संघर्ष, सड़क हादसे में एक-एक बाघ मारा गया। दो की प्राकृतिक मौत जबकि रामनगर डिविजन में एक बाघ की सांप के काटने से मर गया।

उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य जंगली बाघों के निवास के संरक्षण एवं विस्तार को बढ़ावा देने के साथ बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. इनकी तेजी से घटती संख्या को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो ये खत्म हो जाएंगे.

वर्तमान में बाघों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर है. पिछले 100 वर्षों में बाघों की आबादी का लगभग 97 फीसदी खत्म हो चुकी है. 'वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड' और 'ग्लोबल टाइगर फोरम' के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 6000 बाघ ही बचे हैं, जिनमें से 3891 बाघ भारत में हैं. वर्ष 1915 में बाघों की संख्या एक लाख थी.

बाघों की कुछ प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं. भारत उन देशों में शामिल है जिसमे बाघों की जनसख्या सबसे अधिक है. भारत, नेपाल, रूस एवं भूटान में पिछले कुछ समय से बाघों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.

बाघों की आबादी में कमी की वजह

मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार जिसकी वजह से बाघों का 93 फीसदी प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है. बाघों की अवैध शिकार भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब आईयूसीएन के विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं.

इनका अवैध शिकार उनके चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए किया जाता है. इनका इस्तेमाल परंपरागत दवाइयों को बनाने में किया जाता है. बाघों की हत्या कई बार शान में भी की जाती है.

इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन भी बहुत बड़ी वजह है जिससे जंगली बाघों की आबादी कम हो रही है. जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है जिससे जंगलों के खत्म होने का खतरा पैदा हो गया.

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के बारे में

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला वर्ष 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे. इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे.

राष्ट्रीय पशु

बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु कहा जाता है. बाघ देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक है. बाघ भारतीय उपमहाद्वीप का प्रतीक है और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है. पूरी दुनिया में बाघों की कई तरह की प्रजातियां मिलती हैं. इनमें 6 प्रजातियां मुख्य हैं. इनमें साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं.

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