Sunday 22 July 2018

दैनिक समसामयिकी 18 July 2018(Wednesday)

दैनिक समसामयिकी

18 July 2018(Wednesday)

1.भीड़ का अंधा कानून नहीं चलेगा : सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग की घटनाएं रोकने को जारी किए दिशा-निर्देश
• सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालने (मॉब लिंचिंग) की घटनाओं की निंदा करते हुए मंगलवार को कहा कि भीड़तंत्र को कानून की अनदेखी कर भयानक कृत्य करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सरकार लोगों की चीख पुकार अनसुनी नहीं कर सकती।
•  हालात की गंभीरता को देखते हुए तत्काल ठोस कार्रवाई की जरूरत है, ताकि सबको साथ लेकर चलने की सामाजिक संरचना और संवैधानिक भरोसा कायम रहे। ऐसी घटनाएं रोकने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करते हुए अदालत ने संसद से कहा कि लिंचिंग को अलग से अपराध बनाए और उचित दंड निर्धारित करे।
•  गोरक्षा व अन्य कारणों से भीड़ द्वारा लोगों की जान लिए जाने पर तीखी टिप्पणियां करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
• कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से दिशा-निर्देशों पर चार हफ्ते में अमल करने, साथ ही अमल रिपोर्ट पेश करने को कहा है। मामले पर 20 अगस्त को फिर सुनवाई होगी।
• कोर्ट ने कहा, यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है कि कानून-व्यवस्था प्रभावी ढंग से लागू रहे, ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून के शासन में धर्मनिरपेक्ष प्रकृति और बहुलता का विशिष्ट सामाजिक तानाबाना संरक्षित रहे।
• कानून का निर्माण समाज के फायदे और नागरिकों के अधिकार व सामाजिक व्यवहार को नियमित करने के लिए किया जाता है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी कानून लागू करने वाली एजेंसियों पर होती है। भीड़ का पीट-पीटकर मार डालना कानून और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है।
• किसी भी कारण से अनियंत्रित भीड़ को जघन्य कृत्य की इजाजत नहीं दी जा सकती। कानून के संरक्षण के नाम पर की जा रही ऐसी गतिविधियों को शुरुआत में ही खत्म किया जाना चाहिए, नहीं तो अराजकता व कानूनहीनता की स्थिति उपजेगी जो राष्ट्र को महामारी की तरह संक्रमित कर देगी। अगर इन्हें काबू नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इस स्वघोषित नैतिकता की भयंकरता बड़ी उथल-पुथल का आकार ले लेगी।
• बढ़ती असहिष्णुता व ध्रुवीकरण भीड़ ¨हसा की घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
• केंद्र और राज्यों को चार हफ्ते में अमल करने का दिया आदेश
• कहा, ऐसी घटनाएं रोकने के लिए अलग से कानून बनाए संसद
• निरोधात्मक उपाय:-
• हर जिले में नोडल अफसर तैनात हों। वे इंटेलीजेंस यूनिट और थानेदारों के साथ सोशल मीडिया पर भड़काऊ सामग्री का प्रचार-प्रसार रोकें।
• ऐसे अपराधों की खुफिया सूचना जळ्टाने को स्पेशल टास्क फोर्स बने
• राज्य तीन हफ्ते में ऐसे जिलों-गावों को चिह्नित करें जहां गत पांच वर्ष में भीड़ द्वारा ¨हसा हुई है।
• डीजीपी या गृह सचिव नोडल अफसरों के साथ समीक्षा बैठक करेंगे।
• केंद्र ¨हसा की ऐसी घटनाएं रोकने को राज्यों के साथ मिलकर उपाय करेगा।14भड़काऊ संदेश और वीडियो प्रचारित करने वालों के खिलाफ 153ए में एफआइआर दर्ज होगी।
• केंद्र सरकार इस संबंध में राज्यों को एडवाइजरी जारी करेगा
• सुधारात्मक उपाय:-
• अगर घटना होती है तो पुलिस बिना देरी के एफआइआर दर्ज करेगी।
• थानेदार एफआइआर की जानकारी नोडल अधिकारी को देगा, जो तय करेगा कि पीड़ित परिवार को और प्रताड़ित न किया जाए।
• नोडल अधिकारी जांच की निगरानी करेंगे।
• राज्य ऐसी ¨हसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे की नीति बनाएंगे। अंतरिम मुआवजे का भुगतान पीड़ित को 30 दिन में होगा।
•  विशेष अदालत रोजाना सुनवाई कर मामले को छह माह में पूरा करे। सख्त उदाहरण पेश करते हुए अधिकतम सजा दी जाएगी।
• दंडात्मक उपाय:-
• अगर पुलिस या जिला प्रशासन इन निर्देशों का पालन करने और घटनाएं रोकने या जांच आदि में नाकाम रहते हैं तो उसे जानबूझकर लापरवाही माना जाएगा और उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

2. धारा-377 बनी रहेगी, फैसला बालिगों में सहमति से संबंधों पर होगा
• सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा-377 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए साफ किया कि वह कानून को पूरी तरह खत्म नहीं करेगा। बल्कि दो वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों से जुड़े मसले पर ही निर्णय सुनाया जाएगा।
• शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा, ‘अगर धारा-377 को पूरी तरह खत्म कर दिया गया तो अराजकता फैल जाएगी। हम पूरी तरह पुरुष-पुरुष और पुरुष-महिला के बीच सहमति से संबंधों पर निर्णय लेंगे। इसमें सहमति ही केंद्र बिंदु है। आप किसी पर बिना उसकी सहमति के अपना यौन रुझान नहीं थोप सकते।’ बहरहाल, अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और सभी पक्षों को अपने दावे के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
• धारा-377 समान लिंग के लोगों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध मानती है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 10 जुलाई से चार दिन तक इस विवादित मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई की। इस पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्र भी शामिल हैं।
• चूंकि मुख्य न्यायाधीश मिश्र दो अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए माना जा रहा है कि इस विवादित मसले पर फैसला इससे पूर्व आ सकता है।
• मौलिक अधिकारों का हनन रोकेंगे : पीठ ने कहा कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तो उसे खत्म करना अदालत की जिम्मेदारी है। इस पर अदालत सरकार के फैसले का इंतजार नहीं कर सकती।
• इससे पहले ‘एपोस्टॉलिक अलायंस ऑफ चर्च एंड उत्कल क्रिश्चियन एसोसिएशन’ की ओर से पेश वकील श्याम जार्ज ने कहा कि कानून बनाने और अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए वर्तमान कानून में संशोधन करने का काम अदालत का नहीं, बल्कि विधायिका का है। ऐसा करने से दूसरे कई ऐसे कानूनों पर भी असर पड़ेगा जो विवाह और महिला-पुरुषों के नागरिक अधिकारों से जुड़े हुए हैं।
• इस पर जस्टिस नरीमन ने अमेरिका के वेस्ट विर्जीनिया बोर्ड ऑफ एजुकेशन बनाम बर्नेट मामले का हवाला देते हुए कहा, ‘जब भी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की बात हमारे संज्ञान में लाई जाती है तो उसे खत्म करना हमारा दायित्व है। मौलिक अधिकारों के पूरे अध्याय का मकसद ही अदालत को उन कानूनों को खत्म करने का अधिकार देना है जिसे राजनीतिक वजहों से सरकार छूती भी नहीं है। सरकार क्या करती है उसकी हमें चिंता नहीं है। वह कानून बना सकती है, उसे वापस ले सकती है या जो चाहे वह कर सकती है। हमारा दायित्व मौलिक अधिकारों का संरक्षण करना है।’
• ऐसे उठा मुद्दा : यह मुद्दा सबसे पहले नाज फाउंडेशन ने उठाया था। उसने 2001 में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इस धारा को अवैध घोषित करते हुए सजा के प्रावधान को भी गलत बताया था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया। इसके बाद पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की गई है

3. सरकारी बैंकों के वित्तीय सेहत सुधारने के लिए पूंजी मुहैया कराएगी सरकार
• सरकार ने मंगलवार को पंजाब नेशनल बैंक, कारपोरेशन बैंक और आंध्र बैंक सहित सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बैंकों में उनकी नियामकीय पूंजी जरूरतों को पूरा करने के लिए 11,336 करोड़ रूपये  की पूंजी डालने को मंजूरी दे दी।
• सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में यह पहला मौका है जब सरकारी बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार के वादे के अनुसार शेष 53,664 करोड़ रूपये  की पूंजी वित्त वर्ष के आने वाले महीनों में उपलब्ध कराई जाएगी।
• सूत्रों के अनुसार नीरव मोदी घोटाले का शिकार हुए पंजाब नेशनल बैंक को सबसे ज्यादा 2,816 करोड़ रूपये  की पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी जबकि इलाहाबाद बैंक को 1,790 करोड़ रूपये  मिलेंगे। इसके अलावा आंध्र बैंक को 2,019 करोड़ रूपये  , इंडियन ओवरसीज बैंक को 2,157 करोड़ और कारपोरेशन बैंक को 2,555 करोड़ रूपये  की पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी।
• सूत्रों ने बताया कि इनमें कुछ बैंक ऐसे हैं जो कि अतिरिक्त टियर -1 (एटी -1) बांड धारकों को ब्याज भुगतान करने की वजह से वित्तीय दबाव में आए हैं। यही वजह है कि उनके सामने नियामकीय पूंजी जरूरतों को पूरा करने में असफल होने का जोखिम खड़ा हुआ है।
• बैंक दीर्घकालिक पूंजी जुटाने के वास्ते काफी लंबी अवधि के एटी -1 जैसे बांड जारी करते हैं जिन पर आकर्षक ब्याज दिया जाता है।
•  वित्त मंत्रालय ने ऐसी भारी तंगी का सामना कर रहे चार-पांच बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने का फैसला किया है। फंसे कर्ज और बढ़ते घाटे का सामना कर रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजी आधार में सुधार लाने के लिए सरकार ने इन बैंकों को दो साल में 2.11 लाख करोड़ रूपये  की पूंजी सहायता उपलब्ध कराने की घोषणा की थी।

4. यूरोपीय संघ और जापान के बीच मुक्त व्यापार समझौता
• जापान और यूरोपीय संघ (ईयू) ने मुक्त व्यापार समझौते की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि यह संरक्षणवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश है। अमेरिका कारोबार के बीच प्रतिबंध लगा रहा है और ट्रेड वार छेड़ने की धमकी दे रहा है।
• टोक्यो में हुआ यह समझौता इस लिहाज से काफी अहमियत रखता है कि ईयू द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा समझौता है। इससे विशाल फ्री ट्रेड जोन तैयार होगा जिसमें जापानी कारों से लेकर फ्रेंच चीज समेत हर वस्तु का कारोबार हो सकेगा। यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आक्रामक ‘अमेरिका फस्र्ट’ संरक्षणवादी अभियान का कड़ा प्रतिकार भी है। इसके तहत अमेरिका ने न सिर्फ विरोधी बल्कि सहयोगी देशों पर भी शुल्क लगाया है।
• ईयू काउंसिल के प्रेसिडेंट डोनाल्ड टस्क ने समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद कहा कि हम स्पष्ट संदेश भेज रहे हैं कि हम संरक्षणवाद के खिलाफ हैं।
• ईय

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