Friday, 15 June 2018

बिगड़ता पर्यावरण : पृथ्वी और हम

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=>बिगड़ता पर्यावरण : पृथ्वी और हम   

- भारत में मई-जून में बढ़ते तापमान की वजह से किडनी के मरीजों की संख्या 10 फीसदी तक बढ़ी है। फिलहाल दिल्ली में तापमान 44 डिग्री तो चुरु में 49 डिग्री तक जा चुका है। शोधकर्ताओं के मुताबिक आने वाले समय में पूरी दुनिया का तापमान तेजी से बढ़ रहा है साथ ही पानी की कमी लगातार एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।

- वैज्ञानिकों के मुताबिक वर्ष 1850 के करीब औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में पृथ्वी एक डिग्री ज्यादा गर्म हो चुकी है। वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सन् 2100 तक यह तापमान 2 डिग्री तक बढ़ चुका होगा।
- पृथ्वी का तापमान यदि तेजी से बढ़ता है तो तीस लाख लोग तटीय क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ से खतरे में तो 2 अरब लोग सूखे की वजह से पानी की कमी का शिकार होंगे।
- पर्यावरण संगठन जर्मन वॉच के अनुसार सर्बिया, अफगानिस्तान में वर्ष 2015-17 में खतरनाक मौसमी घटनाएं हुईं।

=>विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्मॉग के चलते दुनिया में हर साल 30 लाख लोगों की मौत हो रही है, जिसके वर्ष 2050 तक बढ़कर 66 लाख होने की संभावना है।
- जर्नल नेचर में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक स्मॉग का सबसे ज्यादा असर दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पड़ा है। स्माग का प्रभाव गर्मियों के मौसम में ज्यादा घातक साबित होता है। यह पहले ही घोषित किया जा चुका है कि विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहरों में आधे से ज्यादा भारतीय शहर हैं।

- मौजूदा समय में दुनियाभर में प्रत्येक व्यक्ति के लिए 422 पेड़ मौजूद हैं। देश के लिहाज से देखें तो रूस इस मामले में अव्वल है। यहां करीब 64,100 करोड़ पेड़ हैं। कनाडा में 31,800, ब्राजील में 30,100 और अमेरिका में 22,800 करोड़ पेड़ों की संख्या है।
- अगर जनसंख्या के लिहाज से भारत में मौजूदा पेड़ों का बंटवारा किया जाए तो एक व्यक्ति के हिस्से में महज 28 पेड़ आते हैं।

=>यह हो रहा है क्योंकि
- वैश्विक स्तर पर पेड़ाें की कटाई की बात करें तो दुनियाभर में हर साल 1500 करोड़ पेड़ सालाना काटे जा रहे हैं, जिसके बदले महज 500 करोड़ पेड़ ही रोपे जा रहे हैं। यानी दुनिया को प्रतिवर्ष 1000 पेड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- इसी तरह द फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार जंगलों में आगजनी की 90 फीसदी घटनाएं इंसानी लापरवाही के चलते घटती हैं। इस कारण से 30.7 लाख हेक्टेयर जंगल हर साल इसका शिकार बन जाते हैं।
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