भारत के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होना क्यों महत्वपूर्ण है?
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने की दिशा में भारत कई वर्षों से प्रयासरत है। हाल ही में भारत को निर्यात नियंत्रक संगठन ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य चुना गया है। वहीं इससे पहले हिंदुस्तान दो अन्य संस्थाओं वासेनार अरेंजमेंट व मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का क्लब मेंबर भी बन चुका है।
एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत कई देशों से संवाद स्थापित कर रहा है। अधिकतर देशों ने भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए सहयोग देने का वचन दिया है।
भारत के लिए क्यों आवश्यक है एनएसजी की सदस्यता?
भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु करार किया है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ परमाणु करार की बातचीत चल रही है। फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं अमेरिकी कंपनियां गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में है।
एनएसजी की सदस्यता हासिल करने से भारत परमाणु तकनीक और यूरेनियम बिना किसी विशेष समझौते के हासिल कर सकेगा। परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह जरूरी है कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले।
भारत ने जैविक ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 फीसदी पूरा करने का संकल्प लिया हुआ है। ऐसे में उस पर अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का दबाव है, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब उसे एनएसजी की सदस्यता मिले।
तकनीक तक पहुंच के बाद भारत परमाणु ऊर्जा यंत्रों का वाणिज्यिक उत्पादन भी कर सकता है. इससे देश में नवोन्मेष और उच्च तकनीक के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसके आर्थिक और रणनीतिक लाभ हो सकते हैं। परमाणु उद्योग का विस्तार ‘मेक इन इंडिया’ के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को नयी ऊंचाई दे सकता है।
क्या है न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप?
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी परमाणु अपूर्तिकर्ता देशों का समूह है, जो परमाणु हथियार बनाने में सहायक हो सकनेवाली वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को नियंत्रित कर परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश करता है।
भारत द्वारा मई, 1974 में किये गये पहले परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में इस समूह के गठन का विचार पैदा हुआ था और इसकी पहली बैठक नवंबर, 1975 में हुई थी। इस परीक्षण से यह संकेत गया था कि असैनिक परमाणु तकनीक का उपयोग हथियार बनाने में भी किया जा सकता है।
ऐसे में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों को परमाण्विक वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई। ऐसा समूह बनाने का एक लाभ यह भी था कि फ्रांस जैसे देशों को भी इसमें शामिल किया जा सकता था, जो परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु निर्यात समिति में नहीं थे।
प्रारंभ में एनसीजी के सात संस्थापक सदस्य देश थे- कनाडा, वेस्ट जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका। फिलहाल इसमें 48 देश शामिल हैं। चीन इस समूह में 2004 में शामिल हुआ था।
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