Monday 28 May 2018

कारगिल युद्ध

28 मई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बंदी बनाये जाने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को जब भारत को सौंपा गया तो सबको लगा कि इतनी यातना और चोट के बाद वे सेना छोड़ देंगे। पर कहते हैं न कि इंसान के हौंसलों के आगे पर्वत भी झुक जाते हैं।

नचिकेता के देश-प्रेम ने एक बार फिर उन्हें भारतीय वायुसेना में पायलट के तौर पर ला खड़ा किया। आज भी वे भारतीय सेना में कार्यरत हैं। #KargilHeroes

भारतीय वायुसेना का वो पायलट जिसे कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने बनाया था बंदी..!🇮🇳

कारगिल भारतीय सेना द्वारा लड़े गए सबसे महत्वपूर्ण व मुश्किल युद्धों में से एक है। शायद इसीलिए कारगिल युद्ध से जन्मी वीरता और धैर्य की कहानियां सभी के दिलों को छू जाती हैं। इस युद्ध से कई हीरो जन्में, कुछ के बारे में हम जानते हैं और कुछ के नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए।

ऐसी ही एक अनसुनी और अनकही कहानी है विस्मृत हीरो, फ्लाइट लेफ्टिनेंट कम्बमपति नचिकेता की।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता उन बहुत कम आईएएफ पायलटो में से एक हैं जिनका लड़ाकू विमान दुश्मन की धरती पर दुर्घटनाग्रस्त होने के बावजूद, वे लौट कर भारत आ पाए।

28 मई 1999 को पाकिस्तानी सेना द्वारा गोली लगने के बाद उन्हें एक हफ्ते के लिए बंदी बना लिया गया था पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के दवाब के कारण पाकिस्तान ने उन्हें 4 जून 1999 को रिहा कर दिया। MiG-27 विमान से निकलते समय उनकी रीढ़ की हड्डी में बहुत चोट आयी और बहुत लोगों को लगा कि वे अब सेना में नहीं रह पाएंगे। पर सबको गलत सिद्ध करते हुए नचिकेता आज भी भारतीय वायु सेना में कार्यरत हैं।

साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 26 साल के नचिकेता आईएएफ दल के नंबर 9 में युद्ध-प्रभावित बटालिक क्षेत्र में सेवारत थे। फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता का काम दुश्मन के ठिकानों पर 17,000 फ़ीट की ऊंचाई से 80 mm रॉकेट से हमला करना था।

27 मई 1999 को नचिकेता अपने लड़ाकू विमान MiG-27 से दुश्मन के इलाकों पर गोलीबारी कर रहे थे। उन्होंने टारगेट सेट कर अपने विमान से 30 mm की तोप फायर की ही थी, कि तभी उनके इंजन में आग लग गयी। इंजन में आग लगना किसी भी पायलट के लिए बुरे सपने के जैसा होता है। दरअसल फायरिंग के दौरान निकलने वाला धुंआ इतनी ऊंचाई पर उस दुर्लभ वातावरण में इंजन में चला गया जो की आग लगने की वजह बना।

फिर भी नचिकेता किसी तरह इंजन को काबू करने के प्रयासों में लगे रहे। पर सारे प्रयास निष्फल रहे और नचिकेता को दुश्मन के इलाके में मुन्थूदालो (जो कि बर्फ से ढकी एक पहाड़ी है) नाम की जगह पर उतरना पड़ा।
उस पहाड़ी से नचिकेता को आसमान में एक बिंदु दिखाई पड़ा जो कि उनके बहादुर दोस्त और स्कवॉड्रन लीडर अजय अहूजा थे, जो अपने MiG-21 में अपने साथी के उतरने के ठिकाने को ढूंढ रहे थे। पर नचिकेता उस बिंदु के अचानक फटने से अचम्भे में आ गए। दरअसल पाकिस्तानी मिसाइल अन्ज़ा ने अजय अहूजा के विमान को अपना निशाना बना लिया था।

अपनी आकस्मक लैंडिंग और अपने दोस्त के विमान के फटने से नचिकेता उबरे भी नहीं थे कि आधे घंटे के भीतर पाकिस्तानी सेना ने उन पर हमला शुरू कर दिया। फिर हिम्मत जूटा कर नचिकेता अपनी पिस्तौल में सारी गोलियां भरकर लड़ते रहे।

पर उनका गोलाबारूद खत्म होते ही दुश्मन ने उन्हें घेर लिया और उन्हें रावलपिंडी की जेल में डाल दिया गया। भारत की महत्वपूर्ण जानकारी उगलवाने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर निर्दयतापूर्वक अत्याचार किये। पर पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर नचिकेता के साथ क्रूर व्यवहार रोक दिया गया। एनडीटीवी को दिए एक साक्षताकार में, नचिकेता ने बताया, “गुस्से में वे सभी जवान मेरे साथ क्रूरता कर रहे थे और शायद मुझे मार डालना चाहते थे। क्योंकि उनके लिए मैं सिर्फ उनका दुश्मन पायलट था जिसने उन पर हवाई हमले किये थे। सौभाग्य से वह वरिष्ठ अधिकारी समझदार था। उसे परिस्थिति को समझते देर न लगी। उसे पता था कि अब मैं बंदी हूँ पर मेरे साथ वैसा व्यवहार हो यह जरूरी नहीं।

" मुझे लगा था कि शायद अब मैं कभी भारत को नहीं देख पाउँगा पर एक आस हमेशा थी कि शायद मैं वापिस आ पाऊं।”

नचिकेता पाकिस्तानी जेल में 3 जून 1999 तक युद्ध के बंदी के तौर पर रहे। फिर उन्हें यूएन और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के दवाब के चलते पाकिस्तान में रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति को सौंप दिया गया।

भारत सरकार के उन्हें छुड़वाने के लिए किये गए अथक प्रयासों के चलते कुछ समय बाद उन्हें भारत के वागा बॉर्डर से स्वदेश भेज दिया गया।

अपनी इस कठिन परीक्षा के बाद जब बॉर्डर पर नचिकेता मीडिया से मिले तो उन्होंने कहा कि वे केवल एक सैनिक हैं, कोई हीरो नहीं और साथ ही घोषणा की, कि वे अपनी अगली उड़ान के लिए बिकुल तैयार हैं। हालाँकि उन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से बहुत से मेडिकल ट्रीटमेंट से गुजरना पड़ा।

उनके सभी दोस्त उन्हें प्यार से ‘नचि’ बुलाते हैं। अपनी चोट के चलते नचिकेता लड़ाकू विमानों पर तो नहीं लौट पाए पर भारतीय वायु सेना के परिवाहन बेड़े में शामिल होने के लिए फिर से ट्रेनिंग में लग गए।

बहुत से लोग इस तरह का सदमा अनुभव करने के बाद उम्मीद छोड़ देते हैं परफ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता यकीनन लोहे के बने थे। आज नचिकेता विशाल Ilyushin Il-78 और AN-24 विमानों के दल के कप्तान है। यह विमान आईएएफ विमानों को हवाई उड़ानों के मध्य ईंधन पहुंचाने का काम करते हैं। वैसे तो नचिकेता लड़ाकू विमान उड़ाने के अपने दिनों को बहुत याद करते हैं पर उनका मानना है कि उड़ान किसी भी मायने में चुनौती भरी होती है।

वे कहते हैं, “एक पायलट का दिल हमेशा कॉकपिट में होता है।”

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को कारगिल युद्ध के दौरान अपनी अनुकरणीय सेवा के लिए वायु सेना गैलेंट्री पदक से नवाज़ा गया।

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