Monday 21 May 2018

दया के पात्र हो गए हैं गवर्नर!

allsarkariexam
जिंदगी का मिजाज कुछ ऐसा होता जा रहा है कि दिन-पर-दिन इस देश में भले और इज्जतदार लोगों की कमी होती जाएगी। गांव के सरपंच से राज्य के गवर्नर तक हमें अनुभवी और पुराने गुंडों और बदमाशों से काम चलाना पड़ेगा। आज देश में सौभाग्य से ऐसे नेता उपलब्ध हैं, जिन्होंने अपने कुर्सी-काल में प्रतिभा का इस्तेमाल कर जमकर भ्रष्टाचार किए हैं, पर वे बदनाम होने या आरोप सिद्ध होने के कलंक से बचे रहे हैं। आरोप लगे भी तो वे अखबार की सतह से ऊपर न उछल सके। गवर्नर के पद के लिए ऐसे ही लोगों की ओर आशा-भरी नजरों से देख हम अपेक्षा कर सकते हैं कि मरने के पूर्व ये लोग सुविधाओं वाले पदों पर वक्त गुजारना चाहेंगे। अयोग्य और चालू बूढ़े राजनेताओं की एक कचरा-पेटी राष्ट्र में सदा उपलब्ध रहेगी, जिसमें से हम राज्यों के गवर्नर छांट सकेंगे।
एक और राष्ट्रीय धारणा है कि रिटायर हुआ शख्स बड़ा अनुभवी, योग्य, ईमानदार वगैरह या उसके करीब की चीज होती है। देश में कहीं कोई गवर्नर-हाउस खाली पड़ा हो तो वहां उसे डाला जा सकता है। फाइलों और मीटिंगों में जिंदगी बरबाद किए चीफ सेक्रेटरी किस्म के कार-बंगलाजीवी मनहूस चेहरे वाले ऐसे लोग ऑफर मिलने पर सहर्ष गवर्नर की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार हो जाते हैं।
पर जैसा कि देखते हैं, इधर के सालों में गवर्नर की कुर्सी की बड़ी इज्जत गिरी है। सरकार नामक जो एक टोटल चीज है, उसी की गिरी है तो गवर्नर की कब तक बचेगी? और गवर्नर की इज्जत तो वे ही गिराते हैं, जिनके कारण सरकार की इज्जत गिरी है। जिस तरह गवर्नर को विधानसभा में असम्मानपूर्ण ढंग से प्रवेश लेना पड़ा, अपने भाषण अधूरे छोड़ने पड़े, पिछले दरवाजों से खिसकना पड़ा, उनके विचारों, सलाहों और रिपोर्टों को नजरअंदाज किया गया, फैसले लादे गए, उस सबको देखते हुए अब यह भले, इज्जतदार आदमी के करने लायक नौकरी नहीं रह गई है। गवर्नर के लिए अब केंद्र के अलावा राज्य का भी चमचा होना जरूरी और मजबूरी हो गई है। इस देश में जहां अपने सम्मान की टोकरी अपने ही सिर पर उठाने की जिम्मेदारी सम्माननीयों की होती जा रही है, पराए राज्य के राजभवन में केवल दुबककर बैठे रहना अपने सम्मान की रक्षा के लिए नाकाफी है। और भी बहुत समझौते अनिवार्य होते जा रहे हैं। यदि गवर्नर बना भला आदमी वाकई भला आदमी है तो अपनी कुर्सी सलामत रखने के लिए किस हद तक गिरेगा? आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ऊंचे उठने के लिए पतन की जरूरतों का दायरा बढ़ता जा रहा है। अब गुंडे मुख्यमंत्रियों को केवल संविधान के दम पर एक भला गवर्नर आदमी नियंत्रित नहीं कर सकता, क्योंकि संविधान या शराफत को पूछता कौन है?
इन दिनों गवर्नर दया के पात्र हैं। लगभग सर्वत्र रजिया गुंडन में फंसी है। विधानसभा तक पहुंचना गुंडों की गली से हो पनघट से जल भरकर लाने की तरह कठिन हो गया है। क्या करें? पर अधिक दिनों तक ये सहानुभूति के पात्र नहीं रहेंगे। केंद्र से गवर्नर के पद पर और भी चालू शख्स भेजे जाने लगेंगे। वैसे ही लोग उभर रहे हैं। जहर को जहर काटेगा।

Source-NBT

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