Tuesday, 4 February 2020

चौरी चौरा कांड

चौरी चौरा कांड
* 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर का चौरीचौरा काण्ड हुआ था
* अंग्रेजी हुकूमत के समय सम्भवत: देश का पहला यह काण्ड है जिसमें पुलिस की गोली खाकर जान गंवाने वाले आजादी के दीवानों के अलावा गुस्से का शिकार बने पुलिसवाले भी शहीद माने जाते हैं
* पुलिसवालों को अपनी ड्यूटी के लिए शहीद माना जाता है तो आजादी की लड़ाई में जान गवाने से सत्याग्रहियों को
* 4 फरवरी को दोनों अपनी-अपनी शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं
* थाने के पास बनी समाधी पर पुलिसवाले शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देते हैं
* वहीं अंग्रेजी पुलिस के शिकार सत्याग्रहियों को पूरा देश श्रद्धांजलि देकर नमन करता है
* महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर कपड़े बनाने का अह्वान किया था उनका यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था
* 4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए और थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे
* तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया
* गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए उन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी जिसमें 11 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए जबकि 50 से ज्यादा घायल हो गए
* गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की तरफ भागे फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन्हें दौड़ा लिया
* थाने के पास स्थित एक दुकान से एक टीना केरोसीन तेल उठा लिया मूंज और सरपत का बोझा थाना परिसर में बिछाकर उस पर केरोसीन उड़ेलकर आग लगा दी
* थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे पकड़कर आग में फेंक दिया
* इस काण्ड में एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकला और झंगहा पहुंच कर गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को उसने घटना की सूचना दी
* थाने में जलकर 23 पुलिसवालों की मौत हुई थी
* गोरखपुर जिला कांग्रेस कमेटी के उपसभापति प. दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने घटना की सूचना गांधी जी को चिट्ठी लिखकर दी थी
* इस घटना को हिंसक मानते हुए गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था
* चौरीचौरा काण्ड के लिए पुलिस ने सैकड़ों लोगों को अभियुक्त बनाया था
* गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को 418 पेज के निर्णय में 172 अभियुक्तों को सजाए मौत का फैसला सुनाया दो को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया
* इस फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की जिसका क्रमांक 51 सन 1923 था इस अपील की पैरवी पं. मदन मोहन मालवीय ने की
* मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउड पीयर्स तथा न्यायमूर्ति पीगट ने सुनवाई शुरू की 30 अप्रैल 1923 को फैसला आया जिसके तहत 19 अभियुक्तों को मृत्यु दण्ड, 16 को काला पानी, इसके अलावा बचे लोगों को आठ, पांच व दो साल की सजा दी गई

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