Wednesday, 22 January 2020

गुरु गोविंद सिंह (सिख गुरु)

गुरु गोविंद सिंह (सिख गुरु)
* गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे
* गुरु गोबिंद सिंह बचपन में बहुत ही ज्ञानी, वीर, दया धर्म की प्रतिमूर्ति थे
* इनका बचपन का नाम गोबिंद राय था
* सिख गुरु तेग बहादुर के यहां गोबिंद सिंह ने 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब भारत में जन्म लिया
* खालसा पंथ की स्थागपना कर गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्ख धर्म के लोगों को धर्म रक्षा के लिए हथियार उठाने को प्रेरित किया
* पूरी उम्र दुनिया को समर्पित करने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने त्याग और बलिदान का जो अध्याय लिखा वो दुनिया के इतिहास में अमर हो गया
* गुरु गोविंद सिंह के अन्य नाम सर्बांस दानी, मर्द अगम्र, दशमेश पिताह, बाजअन वाले है
* गुरु गोबिंद सिंह बचपन ने लोगों की भलाई के लिए जी जान लगाने को उत्सुिक रहते थे
* एक बार तमाम कश्मीरी पंडित औरंगजेब द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने से बचने के लिए उनके पिता गुरु तेग बहादुर के पास सहायता मांगने आए थे उस समय गुरु गोबिंद सिंह यानि गोविंद राय की उम्र सिर्फ नौ साल थी, लेकिन कश्मीुरी पंडितों का कष्ट जानकर उन्होंंने अपने पिता से कहा कि इस समय धरती पर आपसे ज्यारदा महान और शक्तिशाली और कौन है, इसलिए आपको इस पंडितों की सहायता के लिए जरूर जाना चाहिए
* आखिरकार उन्होंने अपने पिता को औरंगजेब के अत्याैचार के खिलाफ लड़ने के लिए भेज ही दिया इसके कुछ समय बाद ही पिता की के शहीद होने पर नौ बरस की कम उम्र में ही उन्हें सिक्खों के दसवें गुरु के तौर पर गद्दी सौंप दी गई थी
* गुरु गोबिंद सिंह ने बहुत कम उम्र में ही तमाम भाषाएं जैसे- संस्कृत, ऊर्दू, हिंदी, गुरुमुखी, ब्रज, पारसी आदि सीख ली थीं
* एक वीर योद्धा की तरह उन्होंने तमाम हथियारों को चलाने के साथ ही कई युद्धक कलाओं को भी सीख लिया था
* खास तरह के युद्ध के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने खास हथियारों पर भी महारथ हासिल कर ली थी
* उनके द्वारा इस्तेामाल किया गया नागिनी बरछा आज भी नांदेड़ के हुजूर साहिब में मौजूद है
* गुरु पवन सिंह के पत्नियों का नाम माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन था
* इनके बच्चों के नाम- अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह है
* गुरु गोविंद सिंह का निधन हजुर साहिब नांदेड़, भारत में 7 अक्टूबर 1708 में हुआ
* गुरु गोविंद सिंह के महान कार्यों में खालसा पंथ के संस्थापक और जाप साहिब, चंडी दी वार, तव-प्रसाद सवैये, ज़फर्नामः, बचित्तर नाटक, अकल उस्तात, सिख चौपाई के लेख शामिल है
* गुरु गोबिंद सिंह जी एक जन्मजात योद्धा थे, लेकिन वो कभी भी अपनी सत्ता को बढाने या किसी राज्य पर काबिज होने के लिए नहीं लड़े
* उन्हें राजाओं के अन्याय और अत्याचार से घोर चिढ़ थी आम जनता या वर्ग विशेष पर अत्यााचार होते देख वो किसी से भी राजा से लोहा लेने को तैयार हो जाते

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