गुरू नानक गुरूपर्व
* गुरू नानक गुरूपर्व सिख धर्म के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है
* सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को “राय-भोई-दी” तलवंडी में हुआ था वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान के शेखुपुरा जिले में है और इसे ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है
* गुरू नानक का जन्मदिवस कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि अर्थात “कार्तिक पूर्णिमा” को मनाया जाता है
* ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह उत्सव आम तौर पर नवंबर के महीने में होता है लेकिन इसकी तारीख भारतीय कैलेंडर के पारंपरिक तिथियों पर आधारित है जो साल दर साल बदलता रहती है
* इस तिथि को भारत में राजपत्रित अवकाश घोषित किया गया है
* यह उत्सव आमतौर पर अन्य “गुरूपर्व” के समान ही है, केवल इसके भजन अलग हैं
* यह उत्सव “प्रभातफेरी”के साथ शुरू होता है, जिसमें लोग सुबह-सुबह बस्तियों में भजन गाते हुए जुलूस के रूप में चलते हैं, जिसकी शुरूआत गुरूद्वारे से होती है
* आमतौर पर जन्मदिवस से दो दिनों के पहले गुरूद्वारों में अखण्ड पाठ का आयोजन किया जाता है जिसमें सिखों के पवित्र पुस्तक गुरू ग्रंथसाहिब का 48 घंटों तक लगातार पाठ होता है
* जन्मदिवस से एक दिन पहले “नगरकीर्तन” का आयोजन किया जाता है, जिसका नेतृत्व “पंच प्यारे”(पांच प्रिय लोग) करते हैं
* पंच प्यारे अपने हाथों में सिखों का झंडा (निशान साहिब) और गुरू ग्रंथ साहिब की पालकी (डोली) को लेकर चलते हैं उनके पीछे गायकों एवं भक्तों की टोली सामूहिक रूप से भजन गाते हुए चलती है
* उनके साथ वादक मण्डली भी चलती है जो विभिन्न प्रकार के “धुन” बजाते रहते हैं
* इनके साथ “गटका” टोली भी चलती है जो विभिन्न मार्शल आर्ट के माध्यम से “तलवारबाजी” और पारंपरिक हथियारों के माध्यम से “नकली लड़ाई” का प्रदर्शन करते है
* जिन रास्तों से नगरकीर्तन करने वालों जुलूस गुजरता है उसे बैनर, झंडों, तोरणद्वारों एवं फूलों से सजाया जाता है
* इस जुलुस के माध्यम से गुरू नानक के संदेश का प्रचार-प्रसार किया जाता है
* गुरूपर्व के दिन उत्सव की शुरूआत सुबह 4-5 बजे से ही हो जाती है
* इस दिन इस समय को “अमृत बेला” के रूप में जाना जाता है
* दिन की शुरूआत “आसा-दी-वार” (प्रातः कालीन भजन) के गायन से होती है इसके बाद गुरू की प्रशंसा में कथा (शास्त्र की व्याख्या) और कीर्तन (शास्त्रों के भजन) का आयोजन किया जाता है
* गुरूद्वारों में स्वयंसेवकों के द्वारा “लंगर”(विशेष सामूहिक भोजन) की व्यवस्था की जाती है
* कुछ गुरूद्वारों में रात की प्रार्थना का भी आयोजन किया जाता है साथ ही देर रात तक कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है
* विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में इस उत्सव का नजारा देखने लायक होता है इसके अलावा कुछ सिंधी भी इस त्योहार को मनाते हैं
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