Monday 11 November 2019

कहां ले आई नोटबंदी


प्रतीकात्मक चित्रनोटबंदी की घोषणा को आज तीन साल पूरे हो रहे हैं। वर्ष 2016 में आज की ही रात से 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए थे। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का यह सबसे विवादास्पद कदम माना जाता है, जिस पर आज भी बहस जारी है। कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत काफी हद तक विमुद्रीकरण की ही देन है। सरकार का दावा था कि यह कदम उसने काला धन, जाली नोट, आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए उठाया था, जिसमें उसे पूर्ण सफलता मिली। इससे इकॉनमी पारदर्शी हो गई। न सिर्फ देश में डिजिटल ट्रांजैक्‍शन को इससे बढ़ावा मिला, बल्कि बड़े पैमाने पर ब्‍लैक मनी को मार्केट से बाहर करने में भी मदद मिली। इसके कारण टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ी जिससे सरकार के राजस्व में इजाफा हुआ।

दूसरी तरफ विपक्ष और कई स्थापित अर्थशास्त्रियों ने इसकी कड़ी आलोचना की। इनका कहना है कि नोटबंदी से छोटे कारोबारियों का धंधा चौपट हो गया और वे बेरोजगार हो गए। इस तरह एक बड़े तबके की क्रयशक्ति घटने से अर्थव्यवस्था में मांग गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। पूरा रीयल्टी सेक्टर ही इसके चलते बैठ गया और अपने घर में रहने का लाखों लोगों का सपना टूट गया। बहरहाल, दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं और दोनों के कुछ-कुछ दावे प्रत्यक्ष अनुभव में भी झलकते हैं। लेकिन हाल में आई एक रिपोर्ट ने एक नई चिंता पैदा की है।

नैशनल अकाउंट स्टैटिस्टिक्स (एनएएस) के ताजा आंकड़ों में सामने आया है कि लोगों ने बैंकों में पैसा जमा करने का रुझान छोड़कर नकदी घर में रखना शुरू कर दिया है। वर्ष 2011-12 से लेकर 2015-16 तक, यानी नोटबंदी के ठीक पहले घरों में जमा नकदी बाजार में चल रही कुल करेंसी का 9 से 12 फीसदी थी लेकिन वर्ष 2017-18 में ही यह 26 प्रतिशत तक पहुंच गई। अपने पैसे का लाभकारी निवेश करने या उसको किसी बैंक में जमा करने के बजाय घर में कैश रखना बहुत बुरा संकेत है और स्लोडाउन की यह एक बड़ी वजह है। अच्छी बात यह है कि सरकार अपने तरीके से आर्थिक सुस्ती भगाने के कुछ गंभीर उपाय भी कर रही है।
दिल्ली-एनसीआर, मुंबई क्षेत्र और कई छोटे-मंझोले शहरों में अटकी पड़ी 1600 से अधिक आवासीय परियोजनाओं का काम पूरा करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपये की आरंभिक राशि के साथ उसने एक वैकल्पिक निवेश कोष बनाने का फैसला किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार जो परियोजनाएं गैर-निष्पादित परिसंपत्ति घोषित हो चुकी हैं या राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के पास लंबित हैं, लेकिन अभी दिवालिया घोषित नहीं हुई हैं, वे भी इससे लाभान्वित हो सकती हैं, बशर्ते परियोजना के अधूरे काम का नेटवर्थ धनात्मक हो। यानी उससे आने वाला रिटर्न उसे पूरा करने की लागत से अधिक हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि रीयल्टी सेक्टर में स्फूर्ति आने से बाकी क्षेत्रों में भी सुगबुगाहट पैदा होगी।

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