Saturday, 27 October 2018

सीबीआई का इतिहास

💐सीबीआई का इतिहास

🔈सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी सीबीआई अभी चर्चे में है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भ्रष्टाचार और घूसखोरी की जांच के लिए भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1941 में स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट की स्थापना की। युद्ध के बाद दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट ऐक्ट, 1946 के प्रावधानों के तहत इस एजेंसी का संचालन होता रहा। अभी भी सीबीआई का संचालन इसी कानून के तहत होता है। शुरू में तो इसके जिम्मे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच थी लेकिन धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया। 1963 में गृह मंत्रालय ने एक प्रस्ताव के माध्यम से स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट का नाम बदलकर सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी सीबीआई कर दिया। इसके संस्थापक निदेशक डी.पी.कोहली थे। उन्होंने 1963 से 1968 तक अपनी सेवा प्रदान की।

🔈 बाद के सालों में आर्थिक अपराधों के अलावा और अन्य अपराधों की जांच भी खास आग्रह पर सीबीआई को दी जाने लगी। खासतौर पर धोखाधड़ी और अपराध के हाई प्रोफाइल मामलों की जांच का जिम्मा भी सीबीआई को मिलने लगा। सीबीआई सक्षम और प्रभावी ढंग से काम कर सके इसके लिए 1987 में इसकी दो शाखाएं गठित की गईं। एक शाखा भ्रष्टाचार निरोधी (ऐंटि करप्शन) डिविजन और दूसरी स्पेशल क्राइम डिविजन थी। तीन स्पेशल डायरेक्टर्स सीबीआई के क्षेत्रीय कार्यालयों पर नजर रखते हैं। अगर कोई राज्य सरकार किसी आपराधिक मामले की जांच का सीबीआई से आग्रह करती है तो सीबीआई को पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी पड़ती है। इसके अलावा दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट ऐक्ट, 1946 के मुताबिक, अगर राज्य या केंद्र सरकार सहमति की अधिसूचना जारी करती है तो सीबीआई मामले की जांच की जिम्मेदारी ले सकती है। भारत का सुप्रीम कोर्ट या राज्यों के हाई कोर्ट भी मामले की जांच का सीबीआई को आदेश दे सकते हैं। सीबीआई भारत की आधिकारिक इंटरपोल यूनिट के तौर पर भी अपनी सेवा प्रदान करती है। शीर्ष जांच पुलिस एजेंसी होने के नाते जब इंटरपोल या इसके सदस्य देश आग्रह करते हैं तो सीबीआई किसी मामले की जांच करती है।सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक कमिटी करती है। कमिटी में पीएम, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या उनके द्वारा सिफारिश किया गया सुप्रीम कोर्ट का कोई जज शामिल होते हैं। निदेशक को हटाने की प्रक्रियासाल 1997 से पहले सीबीआई निदेशक को सरकार अपनी मर्जी से कभी भी हटा सकती थी। ऐसे में सीबीआई निदेशकों का स्वतंत्र रूप से काम करना संभव नहीं था। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विनीत नारायण मामले के बाद सीबीआई निदेशक का कार्यकाल कम से कम दो साल का कर दिया ताकि निदेशक स्वतंत्र होकर अपना काम कर सके। सीबीआई डायरेक्टर इंस्पेक्टर रैंक से ऊपर के अधिकारियों जैसे डीएसपी, एएसपी, एसपी, डीआईजी, आईजी और अडिशनल डायरेक्टर को खुद ट्रांसफर नहीं कर सकता है। सीबीआई डीओपीटी यानी डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग (कार्मिक प्रशिक्षण) विभाग के प्रशासकीय नियंत्रण के अधीन है। डीओपीटी आईएएस अधिकारियों की काडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी है। यह रोचक बात है कि सीबीआई में एक भी आईएएस अधिकारी नहीं होता फिर यह डीओपीटी के अधीन है। दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट ऐक्ट में सीबीआई का कोई उल्लेख नहीं है लेकिन सीबीआई का संचालन इसी ऐक्ट के तहत होता है। 1963 में गृह मंत्रालय ने एक प्रस्ताव लाकर इसकी स्थापना की थी।

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