#_चकमा_और_हाजोंग_लोग_कौन_हैं
चकमा’ और ‘हाजोंग’ मूल रूप से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र के निवासी हैं, जिन्हें 1960 के दशक में
#_कप्ताई_बांध_परियोजना’ में उनकी ज़मीन जलमग्न होने के कारण पलायन करना पड़ा था। #'चकमा_जो_बौद्ध और #_हाजोंग_जो_हिन्दू हैं, को उस दौरान पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था,
अतः वे तत्कालीन असम के लुशाई जिले **वर्तमान में यह मिजोरम में हैं)** से होकर भारत में प्रवेश करने लगे एवं यहाँ शरणार्थियों के रूप में रहने लगे। कालांतर में चकमा समुदाय को असम में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्रदान किया गया वहीं हाजोंग समुदाय को असम और मेघालय में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया। वर्तमान में पूर्वोत्तर राज्यों की सरकारें उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं लेकिन उन्हें नागरिकता और भूमि-अधिकार नहीं प्रदान किया गया।
#_इन_समुदायों_का_अरूणाचल_प्रदेश_की_स्थानीय'आबादी_से_टकराव-
यहाँ इस टकराव का प्रमुख मुद्दा इन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के संबंध में है। चूँकि वर्तमान में भारत में निवास करने वाले इन शरणार्थियों में से अधिकांश का जन्म भारत हुआ है अतः ये ‘जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता’ के लिए अर्हता रखते हैं। ये शरणार्थी भी काफी समय से भारतीय नागरिकता की मांग कर रहे हैं। किंतु अरूणाचल की स्थानीय आबादी उनकी इस मांग का विरोध कर रही है।
1987 में जब अरूणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया गया उस दौरान ‘ऑल अरूणाचल प्रदेश स्टूडेंट यूनियन’ (AAPSU) ने चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता देने के खिलाफ जन-आंदोलन का नेतृत्व किया। स्थानीय आबादी की आशंका है कि शरणार्थी शीघ्र ही संख्या में उनसे छयादा हो जाएँगें एवं चुनावी परिणामों को प्रभावित करने लगेंगे।
हाल ही में भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की दिशा में सकारात्मक संकेत दिया है। केंद्र एवं अरूणाचल प्रदेश सरकार इन्हें राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में प्राप्त अधिकारों में बढ़ोत्तरी किए बिना उन्हें नागरिकता प्रदान करने पर बात कर रही है। यद्यपि 2015 में उच्चतम न्यायालय ने इन शरणार्थियों की मांगों पर कार्रवाई करने के लिए केंद्र सरकार को तीन माह का समय दिया था
लेकिन राज्य सरकार के विरोध के कारण केंद्र सरकार न्यायालय के इस निर्देश का पालन नहीं कर पाई।
#_भाषा
चकमा लोग बंगाली-असमिया भाषा से मिलती-जुलती भाषा बोलते हैं। हजोंग तिब्बती-बर्मी भाषा बोलते हैं, हालांकि इसे असमिया की तरह ही लिखा जाता है।
#_निष्कर्ष :
भारत में नागरिकता प्रदान करना संघ सूची का विषय है और राज्यों की आपत्तियों के बावजूद गृह मंत्रालय द्वारा किसी व्यक्ति को नागरिकता प्रदान की जा सकती है। चूँकि पूर्वोत्तर में इमिग्रेशन ध्रुवीकरण का प्रमुख मुद्दा है अतः किसी राजनीतिक अव्यवस्था से बचने के लिए केंद्र द्वारा राज्य सरकार को विश्वास में लेना चाहिए एवं स्वदेशी आबादी का भय दूर करना चाहिए।
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