Monday, 27 August 2018

इतिहास के पन्नों से

इतिहास के पन्नों से

सिखों के लिए सर्वाधिक श्रद्धेय अमृतसर के हरमंदिर साहिब में #_27_अगस्त_1604 को #_गुरू_ग्रंथ_साहिब की स्थापना की गई थी । गुरु ग्रंथ साहिब सिख संप्रदाय को मानने वालों का पूजनीय पवित्र ग्रंथ है । इस ग्रंथ को 'आदिग्रंथ' के नाम से भी जाना जाता है ।

इसका संपादन सिख धर्म के पांचवें गुरु #_श्री_गुरु_अर्जुन_देव_जी ने किया । गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाश #_16_अगस्त_1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ । 1705 में दमदमा साहिब(धमतान साहिब) में दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया, इसमे कुल 1430 पृष्ठ है ।

गुरू ग्रंथ साहिब के मूल मंत्र

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी की आरंभता मूल मंत्र से होती है । ये मूल मंत्र हमें उस परमात्मा की परिभाषा बताता है जिसकी सब अलग-अलग रूप में पूजा करते हैं ।

एक ओंकार
अर्थ : अकाल पुरख (परमात्मा) एक है । उसके जैसा कोई और नहीं है । वो सब में रस व्यापक है । हर जगह मौजूद है ।

सतनाम : अकाल पुरख का नाम सबसे सच्चा है । ये नाम सदा अटल है, हमेशा रहने वाला है ।

करता पुरख : वो सब कुछ बनाने वाला है और वो ही सब कुछ करता है । वो सब कुछ बनाके उसमें रस-बस गया है ।

निरभऊ : अकाल पुरख को किससे कोई डर नहीं है ।

निरवैर : अकाल पुरख का किसी से कोई बैर (दुश्मनी) नहीं है ।

अकाल मूरत : प्रभु की शक्ल काल रहित है । उन पर समय का प्रभाव नहीं पड़ता । बचपन, जवानी, बुढ़ापा मौत उसको नहीं आती । उसका कोई आकार कोई मूरत नहीं है ।

अजूनी : वो जूनी (योनियों) में नहीं पड़ता । वो ना तो पैदा होता है ना मरता है । वो अजन्मा है ।

स्वैभं : उसको किसी ने ना तो जनम दिया है, ना बनाया है वो खुद प्रकाश हुआ है । स्वयंभू अर्थात् आदित्य है ।

गुरप्रसाद : गुरु की कृपा से परमात्मा हृदय में बसता है । गुरु की कृपा से अकाल पुरख की समझ इंसान को होती है ।

सांसारिक प्रेम को जला कर राख कर दो,
उसकी राख से श्याही बना लो,
अपने हृदय को कलम,
बुद्धि को लेखक,
और कुछ ऐसा लिखो जिसका कोई अंत नहीं, जो अमिट हो ।
~गुरुनानक देव जी

ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਖਾਲਸਾ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਫਤਿਹ

~आजाद

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