#आरक्षण_व्यवस्था में #सुधार की आवयश्कता
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या आरक्षण अनंत काल तक जारी रहना चाहिए?
इसका जवाब मुझे लगता है अनंत काल तक कैसे यह जारी रह सकता है ?
आप जातियां खत्म करने का कानून जारी किजीए , SC ST जरूर आरक्षण छोड़ने को तैयार होंगे ।
भारत मे सती प्रथा,बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराईओ को खत्म करने की तरह जातिवाद के खात्मे जैसा सामाजिक रिफॉर्म होना अभी बाकी है...
मौजूदा समय मे अभी आरक्षण की जरूरत है.. लेकिन मौजूद आरक्षण व्यवस्था में सुधार की भी अत्यंत आवयश्कता है
इसमे एक लिमिट तय होनी चाहिए
आरक्षण कि परिभाषा तय होनी चाहिए।
सामाजिक और शेक्षणिक रूप से हाशिए पर रह रहे व्यक्ति को वो फायदा नही हो रहा जो अब तक होना चाहिए था..
ज्यादातर सिर्फ मालदार और रसूखदार लोग ही फायदा उठा रहे है। जो परिवार विकसित हो जाए उसे आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। प्रतियोगी परीक्षा में एक न्यूनतम अंक निर्धारित होने चाहिए ताकि SC ST वर्ग का अभ्यर्थी कम से कम उतने नंबर ला सके और ये ना हो कि 0 नंबर वाला भी पास हो जाये... परिवार को उच्च स्तरीय लाभ मिलने के बाद उसका आरक्षण स्वतः ही समाप्त हो जाना चहिए. सरकार को वोट बैंक की राजनीति से उपर उठकर काम करना चहिए.
कुछ #इतिहास से संबंधित बात कर लेते है
भारतीय समाज मे आरक्षण शुरू होता है वैदिक काल से लेकिन
वेदिक कालीन सभ्यता में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी न कि जन्म के आधार पर यह व्यवस्था उत्तर वैदिक काल तक चलती रही. लेकिन बुद्ध काल तक ये वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर न होकर जन्म के आधार पर हो गईं और तबसे शुरू हुई निम्न जाति और उच्च जाति के बीच का बंटवारा.. और जन्म लिया आरक्षण व्यवस्था ने जो निम्न जाति अछूत कहे जाने वालों के खिलाफ उच्च पदों , महंत , पुजारियों , शिक्षकों और कुलीन वर्ग, व्यपारियो, योद्धा वर्गो से निम्न जाति के लोगो को दूर रखने के लिए था...
हालांकि समाज मे आरक्षण व्यवस्था की झलक महाभारत में कर्ण और उसके जीवन प्रयत्न संघर्ष में दिखती है..मोर्य साम्राज्य में बुद्ध और जैन धर्म के उत्थान के कारण वर्ण व्यवस्था कम हुई और कई मामलों में दलितों को उनका अधिकार दिया गया.. लेकिन इसमे तेजी आई गुप्त साम्रज्य में.. जहाँ ब्राह्मणवाद का पुनरुथान हुआ.. और निन्म जातियो पर अत्याचार बढ़े..इसी काल मे मनुवाद को अत्यधिक बल मिला
#गुप्त_साम्राज्य के समय मे आरक्षण क्या था ?
आरक्षण वो है जो मनुस्मृति में लिखा है । आरक्षण वो है जो पुराणों में लिखा है । ( शुरू के वेदों में वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी )
आरक्षण : ब्राह्मण को ही शिक्षा देने और यज्ञ हवन करने का अधिकार है, यही आरक्षण है ।
आरक्षण : क्षत्रिय को शासन करने और राज कार्य करने का अधिकार है, यही आरक्षण है ।
आरक्षण : वैश्य को व्यापार करने का अधिकार है, यही आरक्षण है ।
आरक्षण : शूद्रों को बिना किसी फल की कामना के उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा करनी है । यही आपका शोषण का आरक्षण है ..
गुप्त काल की यह आरक्षण व्यवस्था क्या स्वतंत्र भारत मे रह सकती है ??? बिल्कुल नही इसी सड़ी गली व्यवस्था और समाज मे उच्च वर्ग के लिए जो आरक्षण समाज के ठेकेदारों ने सवर्ण वर्ग को दिया इससे बचाव के लिए संविधान निर्माणकर्ताओं ने संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था को चुना जो दलित वर्ग के लिए था..
आरक्षण इसलिए दिया कि एक विशेष जाति समूह के लोग जिसका हज़ारो वर्षो से शोषण होता आ रहा हैं जिस व्यवस्था को महात्मा बुद्ध से लेकर भगवान महावीर रोकने में सफल न हो पाए कबीर , ईश्वरचन्द विद्यासागर, ज्योतिबा फुले जैसे महापुरुष जिस जातिवाद को समाप्त करने के प्रयास में अपना जीवन लगाया.. उस सामाजिक बुराई जातिवाद से संरक्षण के लिए आरक्षण व्यवस्था लायी गयी ताकि उन लोगो का विकास सम्भव हो जिसको सदियों से अछूत कहकर तिरस्कार किया गया और समाज मे हाशिए पर रखा गया..
सच्चाई तो यह है कि जाति के नाम पर लोग आज भी वोट डालते है.. जाति के नाम पर ही कई राजनीतिक संघटनो की दुकान चलती है जाति के नाम पर ही वोट बटोरे जाते है जाति के नाम पर ही राजनीति के कारण ही आरक्षण तक उचित लोगो की पहुँच नही हो पा रही है जो अनुसूचति जाति जनजाति के लोग सक्षम हो गए है वह आरक्षण का अनुचित लाभ ले रहे है.. इसे उचित नियम कानून बनाकर रोका जाना चाहिए ताकि केवल जरूरत मंद तक आरक्षण की पहुँच हो लेकिन राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली सरकार ऐसा नियम कानून बनाने में हिचकिचाती है.. जिसका सबसे ज्यादा नुकसान जरूरतमंद SC ST लोगो को ही होता है क्योंकि उनका हक वह लोग उठा लेते है जो पहले से ज्यादा सक्षम हो गए है...
यह था आरक्षण व्यवस्था में सुधार का प्रश्न अगर आरक्षण ही खत्म करना है तो जिस वजह से आरक्षण है वही वजह खत्म हो जाय तो आरक्षण अपने आप ख़त्म हो जाएगा..जातिवाद को जड़ से खत्म करने की जरूरत है. क्योंकि यह एक सामाजिक कुरुति है जो समाज मे समानता के खिलाफ है और नागरिको के बीच ऊँच नीच , असमानता को दर्शाती है... जब तक जातिवाद हैं तबतक आरक्षण रहेगा.. जातिवाद कि रीढ़ को खत्म किया जाय क्योंकि आरक्षण का जन्मदाता जातिवाद है..
आरक्षण तब तक चलता रहेगा जब तक जाति रहेगी तब तक आरक्षण देना ही पड़ेगा क्योंकि जाति के साथ ऊँच नीच लोगो की बीच असमानता सदैव बनी रहती है..इसे केवल जाति प्रथा के खात्मे के साथ ही समाप्त किया जा सकता है.. लोगो मे हम की भावना को लाना होगा न कि वो और मैं की भावना को...
साथ में खाना, उठना बैठना बिना संकोच के होना चाहिए
मुझे तो लगता है सुप्रीम कोर्ट को यह काम करना चाहिए कि हिन्दू धर्म के साथ साथ भारत के प्रत्येक धर्म में जाति सूचक Surname हटाने का आदेश भारत सरकार को दे और केवल नाम के साथ #आधार_संख्या के अंतिम 4 डिजिट से व्यक्ति की पहचान की जाए.. न रहेगी जात न रहेगा आरक्षण न ही होगी असमानता केवल हम सब #भारतीय हो उसके अलावा कुछ नही...
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