राजनीति का अपराधीकरण
सुप्रीम कोर्ट ने 21 अगस्त को राजनीति में अपराधीकरण को ‘सड़ांध’ बताया और कहा कि वह चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से उसके सदस्यों पर दर्ज आपराधिक मामलों का खुलासा करने के लिए निर्देश देने पर विचार कर सकता है। ताकि मतदाताओं को भी पता चल सके कि दलों में कैसे कथित अपराधी हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ की यह टिप्पणी तब आई, जब केंद्र ने कोर्ट को बताया था कि शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा के मद्देनजर सांसदों को अयोग्य ठहराने का मुद्दा संसद के अधीन है। ऐसे में सवाल यह है कि हम इस ‘सड़ांध’ को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं? पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूण और इंदू मल्होत्रा शामिल हैं।
गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को चुनावी राजनीति में आने की इजाजत नहीं देने की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील कृष्णन वेणुगोपाल के उस सुझाव पर भी गौर किया, जिसमें उन्होंने कहा कि कोर्ट चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को ऐसे व्यक्तियों को टिकट नहीं देने का निर्देश दे सकता है।
इस पर पीठ ने कहा कि राजनीति में अपराधीकरण लोकतंत्र के खिलाफ है। हम चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों से उसके सदस्यों से उन पर दर्ज आपराधिक मामलों का खुलासा करने को कह सकते हैं। मामले पर अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
खास बात यह है की केंद्र सरकार का पक्ष अटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल रख रहे हैं, वहीं उनके पुत्र कृष्णन वेणुगोपाल याचिकाकर्ता के वकील हैं। वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि या तो कानून बनाया जाए या फिर कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि राजनीतिक दल दागी व्यक्तियों को टिकट नहीं दे। ऐसा करने पर दलों का चुनाव चिन्ह रद्द होना चाहिए।
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