Monday, 2 July 2018

गुप्‍त साम्राज्‍य का उदय और विकासपृष्‍ठभूमि

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गुप्‍त साम्राज्‍य का उदय और विकास
पृष्‍ठभूमि
मौर्य साम्राज्‍य के पतन के पश्‍चात, उत्‍तर में कुषाण और दक्षिण में सातवाहन शासकों के पास सत्‍ता थी। गुप्‍त साम्राज्‍य ने प्रयाग में अपनी शक्ति के केन्‍द्र को रखते हुए उत्‍तर में कुषाणों को प्रतिस्‍थापित किया और एक शताब्‍दी (335
- 455 ईसवी) से अधिक समय तक राजनैतिक एकता को अखण्‍ड बनाए रखा। गुप्ता राजवंश की स्थापना श्री गुप्ता ने की थी।  गुप्ता शासकों की शक्ति घोड़ों के प्रयोग और उपजाऊ भूमि से धन लाभ और प्राकृतिक संसाधनों से प्रचूर क्षेत्र में निहित थी।
1) चंद्रगुप्‍त प्रथम (319-334 ईसवी)
इन्‍होंने महाराजाधिराज की उपाधि‍ ग्रहण की। लिच्‍छवी की राजकुमारी से विवाह किया।
319-320 ईसवी में गुप्‍त काल की शुरूआत हुई।
असली सोने के सिक्‍के ‘दिनार’ जारी करवाए।
2) समुद्रगुप्‍त (335-380 ईसवी)
इन्‍होंने हिंसा और युद्ध की नीति अपनाई जिसके कारण गुप्‍त साम्राज्‍य का विस्‍तार हुआ।
उनके दरबारी कवि हरिषेण ने इलाहाबाद शिलालेख में इसके सैन्‍य अभियानों का व्‍यापक उल्‍लेख किया है।
वह दक्षिण में कांची तक गए जिस पर पल्‍लवों का शासन था।
श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने गया में बुद्ध मंदिर बनाने की आज्ञा लेने हेतु ए‍क धर्म-प्रचारक को भेजा।
समुद्रगुप्‍त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है।
3) चंद्रगुप्‍त द्वितीय (380-412 ईसवी)
इन्‍होंने विक्रमादित्‍य की उपाधि धारण की।
इन्‍होंने मालवा और गुजरात पर विजय हासिल की जिससे उसे समुद्र तक पहुंच हासिल हुई जिससे व्‍यापार और वाणिज्‍य संपर्क स्‍थापित हुआ। इसने उज्‍जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
इनका दरबार कालिदास और अमरसिम्‍हा जैसे नवरत्‍नों से सुशोभित था।
इसके कारनामें कुतुब मिनार में लोहे के स्‍तंभ पर उत्‍कीर्ण हैं।
चीनी तीर्थयात्री फाह्यान (399-414 ईसवी) ने इसके शासनकाल में भारत की यात्रा की।
गुप्‍त काल में जीवन
1) प्रशासनिक प्रणाली
इन्‍होंने ‘परमभट्टारक’ और ‘महाराजाधिराज’ जैसी आडम्‍बरपूर्ण उपाधियां ग्रहण की।
प्रशासन छोटे प्रांतों पर शासन करने वाले जागीरदारों के साथ बहुत विकेन्‍द्रीकृत था।
लोक और अपराधिक कानून बहुत सीमित थे।
कुमार अमात्‍य बहुत महत्‍वपूर्ण अधिकारी था। लेकिन गुप्‍त के पास मौर्यों जैसी विस्‍तृत अफ़सरशाही व्‍यवस्‍था नहीं थी। ये कार्यालय भी बाद में प्रकृति में वंशानुगत बन गए थे।
पुरोहितों को धन अनुदान और प्रशासनिक छूट देने की भी प्रथा थी। अग्रहार और देवग्रह अनुदान का प्रचलन था।
2) व्‍यापार और कृषि अर्थव्‍यवस्‍था में चलन
गुप्‍त शासकों ने भारी संख्‍या में स्‍वर्ण सिक्‍के जारी किए थे जिन्‍हें दिनार कहा जाता था।
रोमनों के साथ लंबी दूरी के व्‍यापार में कमी आई, जिससे दिनारों में स्‍वर्ण की मात्रा में कमी आई।
पुराहितों को दान में दी गई भूमि को कृषि‍ के अधीन लाया गया।
3) सामाजिक बदलाव
गुप्‍त काल में भी ब्राह्मणों का वर्चस्‍व जारी रहा।
हूणों को भी राजपूतों के 36वें वंश के रूप में पहचाना गया।
शुद्रों की स्थिति में सुधार आया क्‍योंकि उन्‍हें रामायण, महाभारत और पुराणों को सुनने की अनुमति थी।
छूआछूतों और चांडालों की संख्‍या में वृद्ध‍ि हुई।
महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ क्‍योंकि उन्‍हें रामायण, महाभारत सुनने और भगवान कृष्‍ण की वंदना करने की अनुमति थी और सती का प्रथम उदाहरण गुप्‍त काल में ही सामने आया।
4) बौद्ध धर्म की स्थिति
बौद्ध धर्म को गुप्‍त काल में शाही संरक्षण प्राप्‍त नहीं था, लेकिन स्‍तूप और विहार बनाए गए थे और नालंदा बौद्ध धर्म अध्‍ययन का केन्‍द्र बन गया था।
5) भगवतवाद का उदय और विकास
विष्‍णु और नारायण पूजन को भागवत या वैष्‍णव धर्म में मिलाया गया।
यह भक्ति (प्रेम पूजा) और अहिंसा से प्रेरित था।
भगवतगीता, विष्‍णु पुराण और विष्‍णु स्‍मृति में धार्मिक शिक्षाओं का जिक्र किया गया था।
मूर्ति पूजा हिंदु धर्म की प्रमुख विशेषता थी।
गुप्‍त शासकों ने सहिष्‍णुता के सिद्धांत को अपनाया।
6) कला
गुप्‍त काल को प्राचीन भारत का स्‍वर्ण काल कहा जाता है। कला धर्म से प्रेरित थी।
चट्टान काटकर बनी गुफाएं – अजंता, ऐलोरा और बाघ की गुफाएं
सरंचनात्‍मक मंदिर – देवगढ़ का दशावतार मंदिर, श्रीपुर का लक्ष्‍मण मंदिर, ईरान का विष्‍णु और वाराह मंदिर। नगाड़ा शैली के विकास ने भी भारत में संरचनात्‍मक मंदिर के विकास को सक्षम बनाया।
स्‍तूप – सारनाथ का धामेक स्‍तूप, उड़ीसा का रत्‍नागिरी मंदिर, सिंध में मीरपुर खास का इस काल में विकास हुआ।
चित्रकारी – अजंता और बाघ गुफा की चित्रकारी।
मूर्तिकला – सुल्‍तानगंज के समीप बुद्ध की कांसे की प्रतिमा, सारनाथ और मथुरा वाद इस काल के दौरान फलेफूले जिससे बौद्ध की महायान शाखा और मूर्ति पूजा के विकास में मदद मिली।
विष्‍णु, शिव और अन्‍य कुछ हिंदु देवताओं के चित्र भी पाए गए थे।
7) साहित्‍य
धार्मिक
रामायण, महाभारत, वायु पुराण आदि लिखे गए थे। दिगनागा और बुद्धघोष इसी काल में लिखे गए विशेष बौद्ध साहित्‍य थे।
धर्म निरपेक्ष
विशाखादत्‍त द्वारा मुद्राराक्षस
कालीदास द्वारा मालविकाग्निमित्र, विक्रमोवर्षीयम, अभिज्ञानशाकुन्‍तलम नाटक
कालीदास द्वारा रितुसंहार, मेघदूतम, रघुवंशम, कुमारसंभवम कविताएं
सुद्राक द्वारा मरीचकतिका
वत्‍सयायन द्वारा कामसूत्र
विष्‍णु शर्मा द्वारा पंचतंत्र
वैज्ञानिक
आर्यभट्ट द्वारा आर्यभट्ट और सूर्य सिद्धांत
रोमका सिद्धांत
भाष्‍कर द्वारा महाभाष्‍कर्य और लघु भाष्‍कर्य
वराहमिहिर द्वारा पंच सिद्धांत, वरिहात जातक, वरिहात संहिता
साम्राज्‍य का पतन
स्‍कन्‍दगुप्‍त के शासनकाल में हूणों ने आक्रमण किया और उनके उत्‍तराधिकारियों ने शासन को बहुत कमजोर किया।
यशोद्धर्मन के शासनकाल में गुप्‍त साम्राज्‍य को काफी नुकसान पहुंचा।
जागीरदारों और राज्‍यपालों के स्‍वतंत्र होने से गुप्‍त साम्राज्‍य का पतन हुआ। पश्चिमी भारत में पराजय ने इन्‍हें आर्थिक रूप से तोड़ दिया।

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