Monday 18 June 2018

भारत में कृषि संसाधन-

भारत में कृषि संसाधन-

भूमि संसाधनों का उपयोग करके फसलों का उत्पादन करना कृषि कहलाता है भारत कृषि की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है। इसके अतिरक्ति, कुछ उत्पादों जैसे – चाय, काॅफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है।

भारत में कृषि को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

स्थलीय कृषि
जलीय कृषि
स्थलीय कृषि
कर्तन दहन प्रणाली / झूम कृषि (Slash & Burn)

यह कर्तन दहन प्रणाली (Slash & Burn) कृषि है। किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं। जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं। कृषि के इस प्रकार के स्थानांतरण से प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है। चूँकि किसान उर्वरक अथवा अन्य आधुनिक तकनीकों का प्रयोग नहीं करते, इसलिए इस प्रकार की कृषि में उत्पादकता कम होती है। देश के विभिन्न भागों में इस प्रकार की कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में इसे ‘झूम’ कहा जाता है मणिपुर में पामलू (Plamou) और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और अंडमान निकोबार द्वीप में ‘दीपा’ कहा जाता है।

मैक्सिको और मध्य अमेरिका में ‘मिल्पा’, वेनेजुएला में ‘कोनुको’, ब्राजील में ‘रोका’, मध्य अफीका में ‘मसोले’, इंडोनेशिया में ‘लदांग’ और वियतनाम में ‘रे’ के नाम से जाना जाता है।

गहन जीविका कृषि (Intensive livestock farming)
इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है। यह श्रम-गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।

भूस्वामित्व में विरासत के अधिकार के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी जोतों का आकार छोटा और अलाभप्रद होता जा रहा है और किसान वैकल्पिक रोजगार न होने के कारण सीमित भूमि से अधिकतम पैदावार लेने की कोशिश करते हैं। अतः कृषि भूमि पर बहुत अधिक दबाव है। वर्तमान में यह कृषि सर्वाधिक प्रचलित है

वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming)
इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है। कृषि के वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग है। जैसे – हरियाणा और पंजाब में चावल एक वाणिज्य फसल है परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।

रोपण कृषि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। रोपण कृषि, उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ (Interface) है। रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है जो अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। इससे प्राप्त सारा उत्पादन उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है।

भारत में चाय, काॅफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण पफसले हैं। असम और उत्तरी बंगाल में चाय, कर्नाटक में काॅफी वहाँ की मुख्य रोपण फसलें हैं। चूँकि रोपण कृषि में उत्पादन बिक्री के लिए होता है इसलिए इसके विकास में परिवहन और संचार साधन से संबंधित उद्योग और बाशार महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

शस्य प्रारूप (Cuisine format)
भारत में बोई जाने वाली फसलों को अनेक प्रकार को खाद्यान्न और रेशे वाली फसलें, सब्जियाँ, फल, मसाले इत्यादि शामिल हैं। भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं,

रबी
खरीफ
जायद
रबी फसल – शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसंबर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं। यद्यपि ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे – पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू- कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश गेहूँ और अन्य रबी फसलों के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण राज्य हैं।

शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा इन फसलों के अधिक उत्पादन में सहायक होती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में हरित क्रांति की सफलता भी उपर्युक्त रबी फसलों की वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

खरीफ फसलें – यह देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ बोई जाती हैं और सितंबर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं। इस ऋतुमें बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर , अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन शामिल हैं।

चावल की खेती मुख्य रूप से असम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र विशेषकर कोंकण तटीय क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश और बिहार में की जाती है। पिछले कुछ वर्षों में चावल पंजाब और हरियाणा में बोई जाने वाली महत्त्वपूर्ण फसल बन गई है। असम, पश्चिमी बंगाल और ओडिशा में धान की तीन फसलें – आॅस, अमन और बोरो बोई जाती हैं।

जायद फसलें – रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है। जायद ऋतु में मुख्यत तरबूज, खरबूशे, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है। गन्ने की फसल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष लगता है।

भारत में फसलों की श्रेणियां

भारत में प्रमुख फसलों को उनके उपयोग के आधार पर चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

खाद्य फसलों (गेहूं, मक्का, चावल, बाजरा और दलहन आदि)

नकद फसलों (गन्ने, तंबाकू, कपास, जूट और तिलहन आदि)

बागान की खेती (कॉफी, नारियल, चाय और रबड़ आदि)

बागवानी फसलों (फलों और सब्जियां)

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