All Sarkari Examination
ब्लर्ब : बात तभी बनेगी कि जितने पेड़ कटें, उतना पौधरोपण भी करें। तभी हम आने वाली पीढ़ी को वैसा ही हिमाचल दे सकेंगे, जैसा हमें विरासत में मिला है
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इसमें दोराय नहीं कि वन संपदा बेशक पहाड़ की रीढ़ है और इस पर प्रहार के व्यापक असर को समझा जा सकता है। बात सिर्फ जंगलों पर कुल्हाड़ी चलने की नहीं बल्कि तुच्छ स्वार्थ के लिए इन्हें आग के हवाले करने की भी हो रही है। तमाम प्रयास के बावजूद वनों को बचाने की राह में कुछ लोग बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। मंडी जिले की कतांडा बीट में वनरक्षक होशियार सिंह इसलिए माफिया की बलि चढ़ गया था कि वह वनों को बचाने का प्रयास कर रहा था। हालांकि सीबीआइ जांच में जुटी है कि इस मामले की जड़ें कितनी गहरी हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकारी सरपरस्ती के बिना इस तरह के कार्यों को अंजाम नहीं दिया जाता है। वन कटान को देखकर भी चुप्पी साध लेना भी अपराध से कम नहीं है, लोगों को यह बात समझनी चाहिए। मंडी के कतांडा के बाद अब करसोग की औड़ा बीट में भी देवदार के पेड़ कटने से साफ है कि वन माफिया कितना बेखौफ है। हालांकि वन विभाग ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करके अपनी जांच शुरू कर दी है, लेकिन इस जांच का हश्र क्या होगा, यह हर कोई जानता है। कभी घास के लिए जंगलों को जलाया जाता रहे है तो कभी लकड़ी के लालच के लिए कटान करके वनों को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह केवल वन संपदा पर ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण सरोकार पर भी सीधे तौर पर प्रहार भी है। प्रदेश का 65 फीसदी हिस्सा वन से ढका है। इस प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए ही बड़ी संख्या में सैलानी हिमाचल का रुख करते हैं। इससे साफ है कि वन हमारी आर्थिकी की मजबूत कड़ी हैं। समझना होगा कि एक पेड़ के कटने से जितना नुकसान पर्यावरण को पहुंचता है, उससे अधिक हानि लोगों को भी उठानी पड़ती है। एक पौधा कई साल की मेहनत व देखभाल के बाद पेड़ का रूप धारण करता है। लेकिन थोड़े से मुनाफे के लालच में इसे बिना सोच-समझे काटना किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं है। यह समझना होगा कि पहाड़ की जान तभी तक है जब तक पेड़ उसे थामे हुए हैं। ठीक वैसे ही जैसे स्वच्छ पर्यावरण हिमाचल की आर्थिकी में रचा बसा है। वनों की रक्षा के लिए सिर्फ सरकार की ओर ताकना ही काफी नहीं है। लोगों को खुद भी सजग होना होगा। पर्यावरण के साथ भावी पीढ़ी को बेहतर हिमाचल देने के लिए जरूरी है कि जितने पेड़ कटें, हम उतना पौधरोपण भी करें।
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इसमें दोराय नहीं कि वन संपदा बेशक पहाड़ की रीढ़ है और इस पर प्रहार के व्यापक असर को समझा जा सकता है। बात सिर्फ जंगलों पर कुल्हाड़ी चलने की नहीं बल्कि तुच्छ स्वार्थ के लिए इन्हें आग के हवाले करने की भी हो रही है। तमाम प्रयास के बावजूद वनों को बचाने की राह में कुछ लोग बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। मंडी जिले की कतांडा बीट में वनरक्षक होशियार सिंह इसलिए माफिया की बलि चढ़ गया था कि वह वनों को बचाने का प्रयास कर रहा था। हालांकि सीबीआइ जांच में जुटी है कि इस मामले की जड़ें कितनी गहरी हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकारी सरपरस्ती के बिना इस तरह के कार्यों को अंजाम नहीं दिया जाता है। वन कटान को देखकर भी चुप्पी साध लेना भी अपराध से कम नहीं है, लोगों को यह बात समझनी चाहिए। मंडी के कतांडा के बाद अब करसोग की औड़ा बीट में भी देवदार के पेड़ कटने से साफ है कि वन माफिया कितना बेखौफ है। हालांकि वन विभाग ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करके अपनी जांच शुरू कर दी है, लेकिन इस जांच का हश्र क्या होगा, यह हर कोई जानता है। कभी घास के लिए जंगलों को जलाया जाता रहे है तो कभी लकड़ी के लालच के लिए कटान करके वनों को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह केवल वन संपदा पर ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण सरोकार पर भी सीधे तौर पर प्रहार भी है। प्रदेश का 65 फीसदी हिस्सा वन से ढका है। इस प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए ही बड़ी संख्या में सैलानी हिमाचल का रुख करते हैं। इससे साफ है कि वन हमारी आर्थिकी की मजबूत कड़ी हैं। समझना होगा कि एक पेड़ के कटने से जितना नुकसान पर्यावरण को पहुंचता है, उससे अधिक हानि लोगों को भी उठानी पड़ती है। एक पौधा कई साल की मेहनत व देखभाल के बाद पेड़ का रूप धारण करता है। लेकिन थोड़े से मुनाफे के लालच में इसे बिना सोच-समझे काटना किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं है। यह समझना होगा कि पहाड़ की जान तभी तक है जब तक पेड़ उसे थामे हुए हैं। ठीक वैसे ही जैसे स्वच्छ पर्यावरण हिमाचल की आर्थिकी में रचा बसा है। वनों की रक्षा के लिए सिर्फ सरकार की ओर ताकना ही काफी नहीं है। लोगों को खुद भी सजग होना होगा। पर्यावरण के साथ भावी पीढ़ी को बेहतर हिमाचल देने के लिए जरूरी है कि जितने पेड़ कटें, हम उतना पौधरोपण भी करें।
[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]
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