Friday, 17 November 2017

तीन तलाक ख़त्म, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला – 22 August, 2017

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स्वतंत्रता दिवस के ठीक 1 week के बाद मुस्लिम महिलाएँ भी स्वतंत्र हो गयीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा judgment दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 22 August, 2017 को तीन तलाक को ख़त्म कर दिया. आज से और अभी से मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक बोलकर/लिखकर अपनी पत्नी को आसानी से तलाक नहीं दे सकता. पाँच जजों के बेंच ने 3 तलाक पर यह बड़ा फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध और असंवैधानिक बताया. जिसमें से 2 जज इस तीन तलाक के पक्ष में (जिसमें Chief Justice भी शामिल थे) थे और 3 जज इसके खिलाफ थे. इसलिए 3:2 के ratio के तहत तीन तलाक को हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया.

तीन तलाक और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से 2 बातों पर विचार किया – 
  1. क्या 3 तलाक इस्लाम का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा है? क्या 3 तलाक के बिना इस्लाम का स्वरूप बिगड़ जायेगा?
  2. क्या 3 तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है?
संविधान के अनुच्छेद 25-26 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र है. इनके तहत किसी धर्म से जुड़े लोगों को अपने धर्म के नियम और मान्यताओं का पालन करने के लिए आजादी हासिल होती है. हालाँकि इन अनुच्छेदों के तहत धर्म के उन्हीं नियमों और परम्पराओं को संरक्षण हासिल है जो धर्म का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा हो यानी ऐसा हिस्सा जिसे हटा देने से धर्म का स्वरूप ही बिगड़ जायेगा. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय यह सोच कर लिया कि एक साथ तीन तलाक बोलने की व्यवस्था इस्लाम का क्या ऐसा ही मौलिक और अनिवार्य हिस्सा है जिसे हटाया नहीं जा सकता?
तीन तलाक आज के date से 6 महीने तक रद्द किया जा चुका है. 6 महीने के बाद तीन तलाक को हमेशा के लिए ख़त्म करने के पक्ष में संसद से कानून पास होना अनिवार्य है. अब संसद यदि यह कानून पास कर देती है तो न सिर्फ मुस्लिम तलाक के नियम तय हो जायेंगे बल्कि तलाक की स्थिति में मुस्लिम महिलाओं के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना आसान हो जायेगा.

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