अंतर्राष्ट्रीय संबंध
CTBTO में भारत(Dristi IAS)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty Organization- CTBTO) ने भारत को CTBTO में पर्यवेक्षक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (CTBTO) के कार्यकारी सचिव ने कहा कि CTBTO भारत से व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty- CTBT) को अनुमोदित करने की उम्मीद नहीं कर रहा लेकिन भारत को पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होने का अवसर देना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है।
- एक पर्यवेक्षक होने के नाते भारत को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली (International Monitoring System) के डेटा तक पहुँच प्राप्त होगी।
- एक पर्यवेक्षक होने के नाते CTBT के संबंध में भारत की स्थिति नहीं बदलेगी बल्कि अलग-अलग प्रकार के आँकड़ें एवं सूचनाएँ प्राप्त होंगी।
अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली
- अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली एक नेटवर्क है जो फ़िलहाल अपूर्ण है किंतु पूर्ण हो जाने पर 89 देशों में स्थित 337 सुविधाओं (321 निगरानी स्टेशन और 16 रेडियोन्यूक्लाइड लैब) से युक्त होगा।
- यह प्रणाली भूकंपीय विज्ञान, हाइड्रोएकॉस्टिक्स, इन्फ्रासाउंड और रेडियोन्यूक्लाइड तकनीक का उपयोग करके छोटे परमाणु विस्फोटों का भी पता लगा सकती है।
- ज़ाहिर है कि भूकंप की निगरानी हेतु और रेडियो आइसोटोप के फैलाव के बाद डेटा के इस स्तर की उपलब्धता आवश्यक है।
- ज्ञातव्य है कि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली को डेटा भेजना शुरू कर दिया है।
CTBTO
यह CTBT को संचालित करने वाली संस्था है।
CTBT क्या है?
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) किसी के भी द्वारा किसी भी जगह (पृथ्वी की सतह पर, वायुमंड में, पानी के नीचे और भूमिगत) पर परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाती है।
- परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT)
- परमाणु अप्रसार संधि परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु टेक्नोलॉजी के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इस संधि की घोषणा 1970 में की गई थी।
- अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 191 सदस्य देश इसके पक्ष में हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते।
- हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।
परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रति भारत का दृष्टिकोण प्रारंभ से ही स्पष्ट रहा है और इसे संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विभिन्न मंचों पर समय-समय पर स्पष्ट किया जाता रहा है।
NPT: परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है, लेकिन भारत इस अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।
- इसके लिये भारत के निम्नलिखित दो तर्क हैं:
- इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
- इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ यह है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता।
- यह संधि 18 मई, 1974 को तब सामने आई, जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
- भारत मानता है कि 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, यह असमानता पर आधारित, एकपक्षीय और अपूर्ण है।
- भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये।
- परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्तियों के हितों का पोषण करता है। यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है।
- भारत के अनुसार वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वज़ह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
CTBT: नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty-CTBT) पर भी हस्ताक्षर करने से भारत ने स्पष्ट इनकार कर दिया है। भारत के अनुसार यह संधि अपने वर्तमान स्वरूप में भेदभावपूर्ण, खामियों से भरी व नितांत अपूर्ण है।
- जुलाई 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु हथियारों के निषेध से संबंधित इस नई संधि को अपनाया था, जो परमाणु हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहण व तैनाती को अवैध करार देती है।
- भारत अपने स्पष्टीकरण में कह चुका था कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि यह नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि परमाणु निरस्त्रीकरण पर समग्र व्यवस्था कायम करने में सफल हो पाएगी।
- भारत ने इस संधि की सार्वभौमिक नाभिकीय निरस्त्रीकरण की एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में कल्पना की थी, जिससे एक समयबद्ध रूपरेखा के भीतर सभी नाभिकीय हथियारों के पूर्णत: नष्ट होने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
- भारत का यह भी मानना है कि इस व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि का उद्देश्य मात्र परमाणु विस्फोटों के परीक्षण को बंद करना नहीं था, अपितु परमाणु हथियारों के गुणात्मक विकास और उनके परिष्करण को विस्फोट अथवा अन्य माध्यमों से रोकना था।
- इससे भारत के व्यापक राष्ट्रीय व सुरक्षा हितों की पुष्टि नहीं होती और उसके रुख से स्पष्ट है कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों में अपने एटमी विकल्प को खुला रखेगा।
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