Thursday 18 October 2018

सांस्कृतिक_विनाश

-------------------- #सांस्कृतिक_विनाश --------------------
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आपने हमेसा सुना होगा कि ,हिन्दुओ में अमुक पर्व आने वाला है , सनातन संस्कृति में पर्वो का एक महत्वपूर्ण स्थान है चाहे वो कोई भी हो क्योंकि हर पर्व का एक सामाजिक, मानसिक और शारीरिक लाभ है , और विधर्मी उन त्योहारों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उन्हें विकृत करके सिर्फ उन त्योहारों का उपहास ही नही कर रहे बल्कि हमारी सनातनी परम्परा पर भी आघात कर रहे है जिससे सिर्फ समाज ही नही अपितु हमारा भी शारीरिक और मानसिक हाँनि हो रही है ।।

आपने ये तो जान लिया की पर्व मतलब उत्साह या उल्लास मनाने का दिन लेकिन आप ढूँढिये तो पर्व का एक अर्थ मिलता है संधि काल ,संस्कृत में पर्व का एक अर्थ संधिकाल भी मिलता है , और पर्व का मूल भाव भी यही है , संधिकाल का पर्व से क्या तात्पर्य है मतलब है आइये देखते है -

हिन्दुओ के पर्वो की एक लिस्ट बनाये आप आपको एक पैटर्न मिलेगा , जैसे जहां ठंडी खत्म और गर्मी शुरू हो रही है , गर्मी खत्म बारिश शुरू हो रही है , बारिश खत्म ठंड शुरू हो रही है - अब दीपावली दशहरा पड़ता है बारिश और ठंड के संधिकाल में , होली पड़ती है ठंड और गर्मी के संधिकाल में , शिवरात्रि आदि पड़ती है गर्मी और बारिश के संधि काल मे । ये सिर्फ हिन्दुओ के प्रमुख पर्व नही है बल्कि मानव सभ्यता नए मौसम के लिए खुद को तैयार करती है, व्रत ,उपवास भोजन की निर्धारित मात्रा और श्रेणी इसमे सहायता करती है उदाहरण -  बारिश में पालक की मनाही है ,कारण - बरसात के मौसम में पालक और अन्य पत्तेदार सब्जियों में में छोटे-छोटे कीड़े पड़ जाते हैं।

सनातनी पुरुषार्थ खत्म कैसे किया जा रहा है -

पहले सनातनी पर्वो को लेकर हीन भावना भरी जाती है उसका माध्यम बनते है प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया फिर कुछ तथ्यों को इस तरह तोड़कर कॉइन कर दिया जाता है जिसे जातिवादी लपक लेते है, जैसे आजकल रावण दहन को लेकर ब्राम्हण समाज विरोध कर रहा है अब राक्षस किसके आराध्य हो सकते है ये सबको पता लेकिन पढ़े लिखे लोग भी इसमे सम्मिलित है देखकर बुरा लगता है , इन सबसे फिर आसानी से सनातनी सामाजिक एकजुटता को छिन्न भिन्न किया जाता है , चलिए विस्तार से समझते है -

होली में पानी की बर्बादी सूखी होली खेलने का निर्देश , समर्थन हिन्दुओ ने ही किया और उल्लास का पर्व एक सीढ़ी नीचे आया , जो पर्व समाज को जोड़ता था लोगो का आपसी सौहार्द बढ़ता था उसमे अब मांस मदिरा का सेवन करके उसे सामाजिक ताना बाना बिगाड़ने का एक जरिया बना दिया , बसंत में सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण में आ जाता है। फल-फूलों की नई सृष्टि के साथ ऋतु भी 'अमृत प्राण' हो जाती है। इसलिए होली के पर्व को 'मन्वन्तरांभ' भी कहा गया है। लेकिन होली आते ही सबसे पहले जो चीज आनी चाहिए थी उल्लास उत्साह खुसी लेकिन अब वही नाम आता है हुड़दंग ,दंगाई छेड़छाड़ । होली का उत्साह कब होली की हुड़दंग बन गया कभी गौर किया आपने ????

श्रावण मास में शिवलिंग पर दूध मत चढ़ाओ ,इसपर पीछे की पोस्ट पढ़ सकते है इसका खंडन कर चुका हूँ , लेकिन बाकायदा इसको लेकर हीनभावना से भरा गया नई पीढ़ी को ताकि इन उत्सवों को लेकर एक दूरी बन जाये और हम अपनी जड़ों से दूर हो जाये ।

अब आते है दशहरा और दीपावली पर - मोमबत्तियां आ गयी ,झालर आगये दीपक की जगह सामाजिक व्यवस्था में सम्मिलित एक कुम्हार वर्ग को जिसकी जीविका इससे चलती थी वो धीरे धीरे टूटता जा रहा है या यूं कह लीजिए टूट गया , शस्त्रपूजन न होने से हथियार लेने बन्द कर दिए  लोहार टूटता जा रहा है ऐसे ही पटाखों पर भी रोक लगाकर एक दलित श्रमिक का हाथ भी काट दिया गया क्योंकि पटाखों के शोर सिर्फ दीपावली में होते है क्रिसमस न्यू ईयर पर इनसे ऑक्सीजन निकलती है । तो भाइयों सांस्कृतिक विनाश की ओर हम तीव्र गति से अग्रसर है और इसमे विधर्मी कम जिम्मेदार है उससे कही ज्यादा हम है । और हाँ कहते है कि सनातन सदैव था सदैव रहेगा ये वही कबूतर की तरह है जो बिल्ली को अपनी ओर आता देखकर आंख बंद कर लेते है कि खतरा टल गया लेकिन वो मृत्यु को ही प्राप्त होती है ।

धर्मपरिवर्तन हो रहे है लोग हिंदुत्व को गाली देते है क्योंकि हमने किया , ये स्थिति हमने खड़ी की ये सामाजिक व्यवस्था हमने भंग की जिसे अब भी समय है सुधारा जा सकता है ।

हम अपनी संस्कृति को हजारों सालों से बचाते आये है फिर भी आज की भौगोलिक क्षेत्र और प्राचीन सनातन संस्कृति की भौगोलिक क्षेत्र को जरा ध्यान से देखिएगा कितना सफल रहे है , हम अपनी संस्कृति को जीवित रख पाए तो उसका कारण हमारा सभी वर्गों को पर्वो के नाम पर उनको बांध के रखा , हर तबके के फायदा है इन पर्वो से और सामाजिक सुरक्षा होती है इससे उनकी जीविका बढ़ती है समरसता बढ़ती है परस्पर स्नेह बढता है । लेकिन इनपर हमला हो रहा है इस बार हथियार से नही बौद्धिक आतंकवाद से हमपर हमला किया जा रहा है , जिसका मुँहतोड़ जवाब अभी नही दिया तो कल आप अपने नाम के पीछे लगे आस्पद ढूंढोगे ।।

#विशेष -
जो पर्व हमारी सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक हैं।वे आशा, आकांक्षा, उत्साह एवं उमंग के प्रदाता हैं तथा मनोरंजन, उल्लास एवं आनंद देकर वे हमारे जीवन को सरस बनाते हैं।ये पर्व युगों से चली आ रही हमारी सांस्कृतिक धरोहरों, परंपराओं, मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों का मूर्त प्रतिबिंब हैं, जो हमारी संस्कृति का अंतरस्पर्शी दर्शन कराते हैं। सनातनी परम्परा को खंडित करने और अपने स्वार्थ पूर्ति की ऐसी कई साजिशो को एक एक कर नंगा किया जा सकता है परन्तु समस्त समस्याओ का लेखन संभव नहीं हो सकता इसीलिए बस आंखे और कान खुला रखिये सब दिखाई सुनाई देगा ।।

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