Thursday 18 October 2018

चंद्रहासिनी मंदिर धार्मिक स्थल

चंद्रहासिनी मंदिर धार्मिक स्थल

माँ चन्द्रहसिनी का प्रसिद्ध  मंदिर छत्तीसग़ढ़ के जांजगीर - चांपा  जिले में स्थित है|  यह विशाल महानदी के तट पर चंद्रपुर  नामक  नगर पर स्थित है  इसे माँ दुर्गा का रूप भी माना  जाता है|  यहाँ मंदिर परिसर पर विभिन्न प्रकार की भव्य प्रतिमा  का निर्माण किया गया है ।सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं। चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है।

चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से प्रसिद्ध है।।।माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है
चंद्रपुर जिला मुख्यालय जांजगीर से 120 किलोमीटर तथा रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता से घिरा यह स्थल  बहुत ही मनोरम है। एक ओर जहां महानदी अपने स्वच्छ जल से माता चंद्रसेनी के पांव पखारती है, वहीं दूसरी ओर माण्ड नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था, लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ, इसके बाद से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है।  

  मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, शेष शै्यया तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां हैं इसके अलावा मंदिर परिसर में स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है।। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऐसा नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है।यहाँ पर एक सर्व धर्म की मंदिर बनी  हुई है | जिसमे सभी धर्मो में आराध्य देवी  देवतावो की प्रतिमा स्थापित किया गया है |  यह मंदिर सभी धर्मो को एकता के सूत्र में बांधने  का कार्य कर रही है |यहाँ पर प्रति वर्ष शारदीय  और चैत्र  नवरात्र  में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है |   जिसमे विशाल जन  समुदाय उमड़ता है |

किवदंती है कि  एक बार चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गईं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहाँ पर वे विश्राम करने लगीं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहाँ से गुज़री और अनजाने में उनका पैर चंद्रसेनी देवी को लग गया और उनकी नींद खुल गई। फिर एक दिन स्वप्न में देवी ने उन्हें यहाँ मंदिर के निर्माण और मूर्ति की स्थापना का निर्देश दिया।प्राचीन ग्रंथों में संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिरनिर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है।
राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के जमींदार को सौंप दिया। यहां के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है।

चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। अन्यथा माता नाराज हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता।  यही मंदिर के समीप प्रथम दर्शन भोले बाबा के होते  है।।।। 

चंद्रपुर पहुंचने के लिए श्रद्धालु रेलमार्ग से रायगढ़ या खरसिया स्टेशन में उतरकर बस व अन्य वाहनों से माता के दरबार पहुंच सकते हैं। इसके अलावा जांजगीर, चांपा, सक्ती, सारंगढ़, डभरा से चंद्रपुर जाने के लिए दिन भर बस व जीप आदि की सुविधा है। यात्री यदि चाहे तो चांपा या रायगढ़ से प्राइवेट वाहन किराए पर लेकर भी चंद्रपुर पहुंच सकते हैं।

                   *जय मां चंद्रहासिनी*

#crediblechhattisgarh

No comments: