🌕️🌕️चंद्रयान -1 ने चंद्रमा पर पानी की पुष्टि करने में मदद की🌕️🌕️🌕️
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यह पुष्टि की है कि 10 साल पहले भारत द्वारा शुरू किये गए मिशन चंद्रयान -1 (अंतरिक्ष यान) से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के सबसे अंधकारमय और ठंडे हिस्सों में बर्फ जमी होने का पता लगाया है। वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन पीएनएएस (PNAS) नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
क्या कहा गया है अध्ययन में?
‘पीएनएएस (PNAS)’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि चंद्रमा पर पाई गई यह बर्फ इधर-उधर बिखरी हुई है।
यह बर्फ ऐसे स्थान पर पाई गई है, जहाँ चंद्रमा के घूर्णन अक्ष के बहुत कम झुके होने के कारण सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुँचती।
यहाँ का अधिकतम तापमान कभी -156 डिग्री सेल्सियस से अधिक नही हुआ। इससे पहले भी कई आकलनों में अप्रत्यक्ष रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ की मौजूदगी की संभावना जताई गई थी।
दक्षिणी ध्रुव पर अधिकतर बर्फ लूनार क्रेटर्स के पास जमी हुई है। उत्तरी ध्रुव की बर्फ अधिक व्यापक तौर पर फैली हुई लेकिन अधिक बिखरी हुई भी है।
मून मिनरेलॉजी मैपर (Moon Mineralogy Mapper-M3) का किया गया अध्ययन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation -ISRO) द्वारा 2008 में प्रक्षेपित किये गए चंद्रयान-1 (अंतरिक्षयान) के साथ M3 उपकरण को भेजा गया था।
वैज्ञानिकों ने नासा के मून मिनरेलॉजी मैपर (एम3) से प्राप्त आँकड़ों का इस्तेमाल कर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चंद्रमा की सतह पर जल हिम के रूप में मौजूद है।
M3 उपकरण न केवल ऐसे डेटा को एकत्र करने में सक्षम है जो बर्फ के परावर्तक गुणों को प्रदर्शित करते हैं बल्कि यह अपने अणुओं को इन्फ्रारेड लाइट को अवशोषित करने के विशिष्ट तरीके को भी मापने में सक्षम है, इसलिये यह जल या वाष्प और ठोस बर्फ के बीच अंतर कर सका।
चंद्रयान -1
चंद्रयान-1 (भारत का प्रथम चंद्र मिशन) को 22 अक्तूबर, 2008 को प्रमोचित किया गया था।
इस अंतरिक्ष यान में भारत, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी लगाया गया था।
इस मिशन को दो सालों के लिये भेजा गया था लेकिन 29 अगस्त, 2009 को इसने अचानक रेडियो संपर्क खो दिया जिसके कुछ दिनों बाद ही इसरो ने आधिकारिक रूप से इस मिशन के ख़त्म होने की घोषणा कर दी थी।
वर्ष 2017 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इसे फिर से ढूँढ निकाला था।
अध्ययन का महत्त्व
सतह पर पर्याप्त मात्रा में बर्फ के मौजूद होने से के संकेत आगे के अभियानों और यहाँ तक कि चंद्रमा पर रहने के लिये भी जल की उपलब्धता की संभावना को भी सुनिश्चित करते हैं।
यह बर्फ वहाँ कैसे आई, इसके बारे में और अधिक जानकारी तथा चंद्रमा के पर्यावरण को समझने में यह कैसे मददगार हो सकती है आदि कुछ ऐसे सवाल हैं जो आने वाले समय में नासा के विभिन्न अभियानों की दिशा तय करने में मदद करेंगे।
स्रोत : द हिंदू
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