बहादुर बेटीः पिता बीमार रहते हैं, तो 18 साल की उम्र में बन गई किसान...जज्बा गजब का
मिलिए इस बहादुर बेटी से, जिसके पिता बीमार रहते हैं। इसलिए वह एक बेटे की तरह अपना फर्ज निभा रही है। 18 साल की उम्र में किसान बनी लड़की में जज्बा गजब का है
। इसकी कहानी सुनकर सलाम किए बिना नहीं रह पाएंगे आप। दुआ करेंगे कि भगवान ऐसी बेटी सभी को दे।
हरियाणा में अंबाला जिले के मुलाना विधानसभा क्षेत्र के अधोई गांव की एक लड़की अमरजीत कौर ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का सार्थक अर्थ सिद्ध करते हुए अपनी और अपने परिवार की एक अलग पहचान बनाई है। इलाके में 'लेडी किसान' के रूप में पहचानी जाने वाली अमरजीत कौर खुद खेत में फसल बोने से लेकर उसके तैयार होने तक का काम करती हैं। फिर काटकर खुद मंडी में बेच कर आती है। पिता के अचानक बीमार होने और बड़े भाई की पढ़ाई को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए अमरजीत को ऐसा करना पड़ा।
आज अमरजीत की वजह से ही उसके पिता की हालत में सुधार आया है। बड़ा भाई सरकारी नौकरी में है। बड़े भाई की शादी भी अमरजीत ने अपने दम पर करवाई है। घर में सभी प्रकार की सुख सुविधाओं का होना भी अमरजीत की मेहनत का ही नतीजा है। अमरजीत से इलाके के किसान कब कौन सी और कैसे फसल की बुआई करनी है इसकी जानकारी लेने आते हैं। 28 वर्ष की उम्र में एक युवा लेडी किसान के रूप में पहचान बनाने वाली अरमजीत ने जब घर की जिम्मेदारी संभाली थी तो उस समय उसकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी।
अमरजीत घर में सबसे छोटी है। परिवार में माता-पिता, एक बड़ा भाई, भाभी व उनके बच्चे हैं। सभी की देखरेख अमरजीत खुद करती है। बड़े भाई को पढ़ाने के साथ-साथ अमरजीत ने खुद भी अपनी पढ़ाई पूरी की और मास्टर डिग्री हासिल की। अमरजीत इन सबके साथ कढ़ाई का काम भी करती है। घर का चूल्हा चौका भी संभालती है। वह सुबह-शाम खेती कर के परिवार का पालन पोषण कर रही है। दिसंबर 2007 में अमरजीत के पिता बख्शीश सिंह डिप्रेशन से बिस्तर पर आ गए।
परिवार पिता के इलाज और आर्थिक स्थिति में उलझ गया और खेती जिससे परिवार चलता था वो ठप हो रही थी। घर की बिगड़ती आर्थिक हालत और बड़े भाई की पढ़ाई छूट जाने के डर से अमरजीत ने मोर्चा संभाला और सबसे छोटी होने के बावजूद खुद जिम्मेदारी संभाली। ट्रैक्टर चलाना, खेती करना सीखकर परिवार को दिक्कतों से बाहर निकालने की ठानी। उस समय उसे खेती की बिल्कुल जानकारी नहीं थी। आस-पड़ोस के लोगों की मदद से थोड़ा बहुत खेती करते-करते आज वह इतना सीख गई है कि अब गांव के लोग उससे पूछ कर खेती करते हैं।
अमरजीत की वजह से ही उसका बड़ा भाई जसवंत ने पढ़ाई पूरी करते हुए मास्टर्स की डिग्री हासिल की। उसके बाद चंडीगढ़ शिक्षा विभाग में सरकारी नौकरी कर परिवार की जिम्मेदारी संभालने में बहन की मदद कर रहा है। शनिवार व रविवार को छुट्टी पर आने पर वह बहन की थोड़ी बहुत मदद करने लगा है। अमरजीत बताती है कि सुबह पांच बजे से उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। वह खेत संभालती है, उसके बाद पशुओं को चारा डालती है व खाना बनाती है। अब कुछ समय से उन्होंने आर्गेनिक खेती भी शुरू की है।
मंडी और मिल में भी मिलता है अमरजीत को विशेष सम्मान
अरमजीत की मां दलबीर कौर के अनुसार, अमरजीत एक बेटी होते हुए भी एक जिम्मेदार बेटे का फर्ज बखूबी निभा रही है। अमरजीत अपने बलबूते पर मास्टर्स की डिग्री लेने के साथ-साथ खेती को भी अच्छे से जानती है। दलबीर कौर मानती है कि भगवान ने उन्हें एक नहीं दो बेटे दिए हैं। अमरजीत ने अपनी मेहनत से बड़े भाई को पढ़ने में मदद की। उसे सरकारी नौकरी के काबिल बनाया। अमरजीत अकेले फसल बोने का काम करती है। उसके बाद फसल को कटवा कर फसल को बेचने के लिए मिल व मंडी व मिल में भी जाती है। वहां भी अमरजीत को विशेष सम्मान मिलता है।
अरमजीत की मां दलबीर कौर के अनुसार, अमरजीत एक बेटी होते हुए भी एक जिम्मेदार बेटे का फर्ज बखूबी निभा रही है। अमरजीत अपने बलबूते पर मास्टर्स की डिग्री लेने के साथ-साथ खेती को भी अच्छे से जानती है। दलबीर कौर मानती है कि भगवान ने उन्हें एक नहीं दो बेटे दिए हैं। अमरजीत ने अपनी मेहनत से बड़े भाई को पढ़ने में मदद की। उसे सरकारी नौकरी के काबिल बनाया। अमरजीत अकेले फसल बोने का काम करती है। उसके बाद फसल को कटवा कर फसल को बेचने के लिए मिल व मंडी व मिल में भी जाती है। वहां भी अमरजीत को विशेष सम्मान मिलता है।
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