Tuesday 29 May 2018

यूरोप_में_राष्ट्रवाद

#यूरोप_में_राष्ट्रवाद#

यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना तो पुनर्जागरण काल से ही फैलने लगी थी,लेकिन इसने अपना रूप 1789 की फ्रांसीसी क्रांति की सफलता के बाद दिखाना आरंभ किया! राष्ट्रवाद को फैलाने की जिम्मेवारी नेपोलियन बोनापार्ट की भी थी जब उसने छोटे छोटे राज्यों को जीतकर एक बड़ा देश का रूप देने लगा उसी ने इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया था,
यूरोप की विजय शक्तियों ने वियना मे एक सम्मेलन किया जिसका मेजबान मेटरनिख था, जो घोर प्रतिक्रियावादी था इस सम्मेलन का उद्देश्य उस व्यवस्था को तहस-नहस करना था जिसे नेपोलियन ने स्थापित की थी! इस सम्मेलन में ब्रिटेन, परशा,रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे यूरोपीय शक्तियां सम्मिलित हुई थी! मेटरनिक के प्रयास से तय हुआ कि यह पुरातन व्यवस्था ही चालू रखी जाए इटली को पुनः कई भागों में बांट दिया गया वहां ब्रूबो राजवंश का शासन पुनः स्थापित हो गया परंतु सुधारवादी भी चुप बैठने वाले नहीं थे!
इसी समय मेजनी ,काबुर, गैरीबाल्डी भी सामने आए इन तीनों के प्रयास से एक ओर इटली और दूसरी ओर जर्मनी का एकीकरण हो कर रहा बिसमार्ग भी नई व्यवस्था का समर्थक था जिसे जर्मनी का चांसलर बनाया गया,
इटली और जर्मनी का एकीकरण और वहां की राष्ट्रवादी मनोवृति से उत्साहित होकर यूनानियों में भी स्वतंत्रता की अकूलाह होने लगी यूनान जैसे प्राचीन देश जिसे अपनी प्राचीन सभ्यता पर गौरव था उस्मानिया साम्राज्य के तले कराह रहा था,
प्राचीन यूनान ने अनेक तरह से विश्व की सेवा की थी वहां के साहित्य उच्च कोटि के थे विचार,दर्शन,कला,चिकित्सा,विज्ञान आदि की उपलब्धियां यूनानियों के लिए प्रेरणा के स्रोत थे यूनानी चिकित्सा पद्धति विश्व में आज भी मानी जाती है आयुर्वेद से वह जरा भी कम नहीं है,
राष्ट्रीयता के जितने तत्व होने चाहिए वे सब यूनान में मौजूद थे धर्म, संस्कृति ,भाषा, जाती सभी आधार पर यूनानी एक थे, फलत:वे किसी प्रकार तुर्की साम्राज्य से छुटकारा चाहने लगे आंदोलन पर आंदोलन हुए अंत में युद्ध की नौबत आ गई सारा यूरोप यूनान की ओर से खड़ा हो गया तुर्की को केवल मिस्र का साथ मिला युद्ध हुआ जिसमें तुर्की और मिश्र बुरी तरह हार गए अंतत: यूनान एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने में सफल हो गया!
अब यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना और भी प्रबल हुई जिसका परिणाम साम्राज्यवाद के प्रसार के रूप में हुआ इससे ना केवल यूरोप प्रभावित हुआ बल्कि इसका असर पूरे विश्व पर पड़ा अफ्रीका और एशिया में साम्राजवादियों ने अपने पैर जमाए ही, उत्तरी अमेरिका,दक्षिणी अमेरिका,और ऑस्ट्रेलिया में भी अपना पैर पसारने में सफल हो गए उत्तर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी या तो दूर जंगलों में खदेड़ दिय गए या मार दिए गए!
(NCERT) (संक्षेप स्रोत)

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